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________________ 153 जैन-विभूतियाँ 39. श्री कुन्दनमल फिरोदिया (1885-1968) जन्म : अहमदनगर, 1884 पिताश्री : शोभाचन्द फिरोदिया पद : स्पीकर, महाराष्ट्र विधानसभा दिवंगति : पूना, 1968 ओसवाल श्रेष्ठि श्री कुन्दनमल फिरोदिया ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में अभूतपूर्व सहयोग देकर महाराष्ट्र ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत के राजनैतिक पटल पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कराया। उनके पूर्वज श्री उम्मेदमल राजस्थान में नागौर जिले के 'फिरोद' गांव से सन् 1825-30 के लोक विमर्षक अकाल के दरम्यान महाराष्ट्र के अहमदमगर कस्बे में आकर बसे। इसी से वे फिरोदिया कहलाने लगे। वस्तुत: उनका गोत्र 'सालेचा' था। __ ओसवाल जाति का उद्भव मूलत: क्षत्रियों के जैन धर्म अंगीकार कर लेने से हुआ। सन् 1155 में उम्मेदमलजी के पूर्वजों ने हिंसा कर्म को तिलांजलि देकर खेती एवं व्यवसाय अपना लिया। सालेचा श्रेष्ठि राजा जी की सातवीं पीढ़ी में उम्मेदमल हुए। उनके अहमदनगर स्थानान्तरित होने के बाद शुरु के वर्षों में एक 'गुन्देचा' गोत्रीय श्रेष्ठि ओसवाल कपड़े के व्यापारी ने उनकी यहाँ पैर जमाने में बहुत मदद की। उम्मेदमलजी के पौत्र शोभाचन्दजी की इकलौती सन्तान कुन्दनमलजी थे। कुन्दनमलजी का जन्म सन् 1885 में अहमदनगर में हुआ। उनकी शिक्षा अहमदनगर, पुणे एवं मुंबई में हुई। वे मेधावी थे। सन् 1907 में उन्हें मुम्बई विश्व विद्यालय का स्नातक होने एवं स्वर्ण पदक प्राप्त करने का श्रेय प्राप्त हुआ। पेशवाओं द्वारा स्थापित दक्षिण स्कॉलरशिप से भी उन्हें नवाजा गया। विधि परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वकालत को पेशा बनाने
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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