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________________ 146 जैन-विभूतियाँ 38. डॉ. हीरालाल जैन (1899-1973) जन्म : गांगई ग्राम, गोंडल प्रदेश, 1899 पिताश्री : बालचन्द मोदी माताश्री : झुतरो बाई शिक्षा .: एम.ए., पी.एच-डी., डी. लिट. सृजन/सम्पादन : षट्खंडागम-धवला दिवंगति : 1973 जैन दर्शन एवं साहित्य को समृद्ध करने वाली जैन आचार्यों एवं मुनियों की अजस्र धारा तो सदा से बहती रही है किन्तु उसमें जैन श्रावकों का योगदान विरल ही रहा है। 20वीं शदी इस दृष्टि से जैन परम्परा का स्वर्णकाल कहा जायेगा जिसमें जैन श्रावकों का प्राचीन आगम ग्रंथों की शोध एवं मौलिक साहित्य के सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। डॉ. हीरालाल जैन इसी श्रृंखला की स्वर्णिम कड़ी थे। उन्होंने अपनी आभा से अपभ्रंश भाषा-साहित्य एवं अलभ्य प्राकृत जैन ग्रंथ 'षट्खंडागम एवं उसकी धवला टीका' का सुसम्पादन कर विस्तीर्ण टिप्पणियों सहित सोलह भागों में प्रकाशित किया। ___गोंडल क्षेत्र के गढ़मंडला प्रदेश पर कभी रानी दुर्गावती ने राज्य किया था। चौगान दुर्ग के शासकों ने 'मोदी' गोत्र के महाजन वंशजों को अपना अर्थतंत्र सम्हालने का अधिकार दिया था। बुंदेला राणा के आक्रमण से दुर्ग ध्वस्त हो गया तो चौहान नरेश ने चीचली नामक स्थान पर अपना राज्य स्थापित किया। तब भी मोदी कुलोत्पन्न ‘मचल मोदी' उनकी अर्थ व्यवस्था सम्हाल रहे थे। उन्हीं के पौत्र बालचन्द हुए। वे अपने ज्येष्ठ भ्राता लटोरेलाल के साथ गांगई ग्राम आ बसे। उनकी तीसरी संतान हीरालाल थे। हीरालाल का प्रारम्भिक अध्ययन ग्राम के प्राईमरी
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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