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________________ जैन- विभूतियाँ 37. पं. बेचरदास दोशी (1889 - 1982 ) जन्म पिताश्री माताश्री सर्जन / संपादन : सन्मति तर्क दिवंगत : वल्लभीपुर, 1889 : जीवराज लाधाभाई दोशी : ओम बाई 143 : अहमदाबाद, 1982 सत्य की साधना, तलवार की धार पर चलने जैसी होती है पांडित्य और पुरुषार्थ उसे गति प्रदान करता है। अभिव्यंजना शक्ति मौलिक सृजन करती है। पंडित बेचरदास दोशी सरस्वती के ऐसे ही समन्वयी उपासक थे। उन्होंने जैन समाज को अंधश्रद्धा की घोर निद्रा से जगाया। बीसवीं सदी के जैन दर्शन की क्रांतिद्रष्टा त्रयी में एक पंडित बेचरदासजी दोसी थे। ( अन्य मुनि जिन विजयजी एवं पं. सुखलालजी संघवी गिने जाते हैं ।) आपका जन्म बीसा दोशी गोत्रीय अत्यंत गरीब घर में सन् 1889 में सौराष्ट्र के वल्लभीपुर में हुआ । इस नगरी को विक्रम की पांचवीं शदी में जैनागमों को देवार्धिगणि क्षमाश्रमण द्वारा सर्वप्रथम पुस्तकारूढ़ करने का गौरव प्राप्त है। बेचरदासजी के पिता का नाम जीवराज दोशी था । माता का नाम था ओतम बाई । यह परिवार श्रीमाली कुल का था । दस वर्ष की उम्र में ही पिता का देहांत हो गया। माँ मेहनत मजदूरी करके घर खर्च चलाती । आप भी माँ का हाथ बँटाने उसके साथ जाते। तभी भाग्य ने पलटा खाया। सन् 1901 में जब वे मात्र 12 वर्ष के थे गुजरात के प्रसिद्ध जैन मुनि विजय धर्म सूरि की नजर आप पर पड़ी। वे जैन दर्शन के शिक्षण के लिए चुन लिए गए। मंडल एवं पालीताना में कुछ महीने पढ़ने के बाद आप काशी चले गए। वहाँ जैन दर्शन का विशद अध्ययन किया एवं कलकत्ता संस्कृत कॉलेज की स्नातक
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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