________________
गाड़ने-फर गए। इस तपस्या 1941 के दिन
142
जैन-विभूतियाँ कि अन्तत: 22 दिसम्बर, 1941 के दिन वे इस स्वार्थी संसार से प्रयाण कर गए। इस तपस्वी की अर्थी पर कबीर की मैयत की तरह ही गाड़ने-फूंकने के प्रश्न को लेकर हिन्दू-मुसलमानों के बीच संघर्ष की नौबत आ गई। परिवार वालों को तो तीन-दिन बाद मृत्यु की खबर लगी।
बंगाल के मनीषी देशबंधु सी.आर. दास ने कभी सच ही कहा था"सेठीजी के जन्म का उपयुक्त स्थान राजस्थान नहीं था, वे बंगाल में जन्म लेते तो बंगाली उन्हें सर आँखों पर बिठाते। सेठीजी जैसे व्यक्ति जिस धरती, समाज, देश व कुल में पैदा होते हैं वह धन्य हो जाती है।"
(HANI
A
D
Santa
HAMATA
UPTA