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जैन - विभूतियाँ
समय हुए काँग्रेस के चुनाव में काँग्रेस हाईकमांड ने उनके खिलाफ प्रतिद्वन्द्वी खड़ा किया। फिर भी जीत सेठीजी की हुई ! अन्ततः हाईकमांड ने चुनाव ही रद्द कर दिया। कार्यकर्त्ताओ ने सेठीजी के नेतृत्व में सत्याग्रह कर दिया । प्रतिद्वन्द्वीयों ने लाठी का सहारा लिया। इस आक्रमण से सेठीजी घायल हो गये । महात्मा गाँधी, मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपतराय आदि नेता उनके निवास पर गए। गाँधीजी प्रायश्चित स्वरूप उपवास करना चाहते थे । एक युवक तो इतना उद्यत हो गया कि वह गाँधीजी की हत्या ही कर देता। बड़ी मुशिकल से उसे रोका गया। इस तरह इस दुर्धर्ष योद्धा की राजनैतिक हत्या कर दी गई। इसी गुटबन्दी का शिकार नेताजी सुभाशचन्द्र बोस, खरे एवं नरी मैन को होना पड़ा। सेठीजी ने इस भ्रष्टाचार और अन्याय का साथ न देकर राजनीति से सन्यास लेना ही उचित समझा। सन् 1934 में कुछ नेताओं के समझाने पर फिर से राजनीति में भाग लेने को तत्पर हुए। वे राजपूताना एवं मध्यभारत प्रान्तीय काँग्रेस के प्रांतपति चुने गए किन्तु प्रतिपक्षीदल ने यह चुनाव भी रद्द करा दिया। सन् 1935 में राजनीति का विषाक्त वायुमण्डल छोड़कर वे पूर्णत: समाज सेवा को समर्पित हो गए।
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वे जैन धर्म में अपार श्रद्धा रखते थे । प्रवचन करने लगे । अन्यान्य धर्मों का गहरा ज्ञान था उन्हें । परन्तु धर्मान्धता एवं सम्प्रदायवाद से कोसों दूर रहते थे। उनका धार्मिक सुधारों एवं साधुओं के समाजीकरण के लिए अवदान उल्लेखनीय था। सन् 1930 में दो जैन साधुओं के सेठीजी की प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से मुखपत्ती उतार देने से जैन समाज बौखला गया। जैन गुरुकुलों ने सदा के लिए उनसे सम्बन्ध विच्छेद कर लिया ।
देश सेवा में सेठीजी का सब कुछ स्वाहा हो गया। उनका परिवार दरिद्रता के कगार पर आ खड़ा हुआ । सेठीजी ने किसी के आगे हाथ पसारा नहीं । पुत्र प्रकाश की मृत्यु के मर्मान्तक आघात से वे टूट गए । वे तीस रुपए मासिक पर मुस्लिम बच्चों को पढ़ाने पर मजबूर हो गए। नेताओं एवं साथियों की बेवफाई का उनके हृदय पर ऐसा आघात लगा