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जैन-विभूतियाँ
135 में आपका अभिनन्दन किया गया। सन् 1956 में गुजरात युनिवर्सिटी ने आपका D. Lit. की मानद उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1967 में सरदार पटेल यूनिवर्सिटी वल्लभविद्या नगर, गुजरात ने भी D. Lit. की उपाधि से आपका सम्मान किया। सन् 1974 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1975 में वे 'विद्यावारिधि' के विरुद से विभूषित हुए। डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल के शब्दों में वे महाप्रज्ञ थे। 2 मार्च, 1978 के दिन अहमदाबाद में पंडितजी ने इस संसार से विदा ली। भारतीय दर्शन-संसार एवं समग्र जैन समाज इस प्रज्ञाचक्षु मनीषी को इनकी अप्रतिम सेवाओं के लिए हमेशा याद रखेगा।
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