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जैन - विभूतियाँ
35. श्री सुखसम्पतराज भंडारी (1893-1961)
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जन्म
: भानपुरा, 1893
पिताश्री
: जसराज जी भंडारी
:
सर्जन ओसवाल जाति का इतिहास, भारत के देशी राज्य, भारत दर्शन, तिलक दर्शन, राजनीति विज्ञान, अंग्रेजी - हिन्दी कोष
दिवंगति : 1961, इन्दौर
शब्द-ब्रह्म की उपासना में लीन रहने वाले भंडारी गोत्रीय श्री सुख सम्पतराज का जन्म भानपुरा (मध्यप्रदेश) में सन् 1893 में हुआ । आपके पिता का नाम जसराज जी था । जसराज जी मात्र दस वर्ष की अवस्था में कच्ची सड़क से ऊँट की सवारी कर जैतारण ( मारवाड़) से भानपुरा ( इन्दौर) आए एवं अपने नाना जीतमलजी कोठारी के निरीक्षण में दूकान का काम देखने लगे। सन् 1900 में आपने " जसराज सुखसम्पतराज' नाम से स्वतंत्र फर्म स्थापित की । भानपुरा में इस फर्म की अच्छी प्रतिष्ठा थी । जसराज जी का देहांत सन् 1924 में हो गया ।
सुखसम्पतराज जी आपके सबसे बड़े पुत्र थे। मेधावी तो थे ही, हिन्दी में कुल 22 ग्रंथ लिखे । "भारत के देशी राज्य" ग्रंथ पर इन्दौर दरबार ने आपको 15 हजार रुपए का वृहद् पुरस्कार दिया। बीस बरस की वय में आपने 'वेंकटेश्वर समाचार' का सम्पादन भार सम्भाला। फिर सद्धर्म प्रचारक ( 1914), 'पाटलीपुत्र' (1915), मल्लारि मर्ताण्ड (1916), नवीन भारत (1923) एवं किसान (1926) आदि विभिन्न पत्रिकाओं का सम्पादन - प्रकाशन संभाला। आपने विभिन्न विषयों पर लगभग 25 ग्रंथ लिखे जिनकी विद्वानों द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गई। लाला लाजपतराय ने आपके 'भारत दर्शन' ग्रंथ की एवं महामना मदन मोहन मालवीय ने आपके 'तिलक दर्शन' ग्रंथ की भूमिका लिखी थी । आपकी