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जैन-विभूतियाँ सेवारत रहकर पं. बेचरदास दोशी के सहयोग से सन् 1920 में जैनदर्शन के अभूतपूर्व ग्रंथ 'सन्मति तर्क' का सम्पादन किया। डॉ. हरमन जेकोबी ने इसे अद्वितीय ग्रंथ बताया है। सन् 1933 से पं. मदनमोहन मालवीय के अनुरोध पर आप बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी के दर्शन विभाग के प्राचार्य बने जहाँ 1944 तक आपने दर्शन साहित्य के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए। आपने करीब 26 महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का सम्पादन किया जिनमें सिद्धसेन दिवाकर का 'नयायावतार' उमास्वाति का 'तत्त्वार्थ सत्र' और हेमचन्द्राचार्य का 'प्रमाण मीमांसा' मुख्य हैं। अनेकानेक शोध-प्रबंध आपके निर्देशन में लिखे गए।
"प्रमाण मीमांसा'' ग्रंथ में दी टिप्पणियों एवं प्रस्तावना का अंग्रेजी भाषांतर भी हुआ जो सन् 1961 में "Advanced Studies in Indian Logic and Metaphysics'' नाम से प्रकाशित हुआ। यशोविजय जी कृत "जैन तर्कभाषा'' ग्रंथ टिप्पणियों एवं प्रस्तावना सहित सम्पादित किया। चार्वाक दर्शन के एकमात्र ग्रंथ 'तत्त्वोपप्लवसिंह'' का टिप्पणियों सहित सम्पादन कर सन् 1940 में प्रकाशित किया। बौद्ध दर्शन के धर्मकीर्ति कृत 'हेतु बिन्दु' ग्रंथ का भी आपने सम्पादन किया जो सन् 1949 में गायकवाड़ सिरीज में प्रकाशित हुआ।
लेखन, सम्पादन के साथ ही अध्यापन भी पंडितजी की उपासना का अंग रहा। वे विभिन्न दर्शन एवं आध्यात्म विषयों पर व्याख्यान देते रहे। 'भारतीय तत्त्व विद्या' पर सन् 1958 से 1960 के बीच गुजराती एवं हिन्दी में दिए उनके व्याख्यानों का अंग्रेजी रूपान्तरण "Indian Philosophy'' ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है। 'आत्मा-परमात्मा' विषयक उनके व्याख्यान सन् 1956 में "आध्यात्म विचारणा'' नाम से प्रकाशित हुए। 'समदर्शी आचार्य हरिभद्र' विषयक उनके व्याख्यान सन् 1966 में इसी नाम से प्रकाशित हुए। आपके अन्यान्य शोधपरक निबन्धों का संग्रह ''दर्शन एवं चिंतन'' नाम से तीन खंडों में प्रकाशित हुआ।
वे क्रांति द्रष्टा एवं सत्य शोधक थे इसीलिए पाश्चात्य मनीषियों ने उन्हें ऋषि तुल्य माना। 1957 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता