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जैन-विभूतियाँ व्यय किया उसकी सार्थकता एक साधारण व्यक्ति नहीं समझ सकता, फिर भी इतिहास और कलापारखी विद्वानों के लिए वह संग्रह कम कीमत नहीं रखता। इसी प्रकार विवाह की कुंकुम पत्रिकाओं का संग्रह भी आपने किया था और इससे यह बतला दिया था कि छोटी-छोटी वस्तुएँ भी अपना महत्त्व रखती हैं। आप प्रत्येक वस्तु को बड़े सुन्दर ढंग से सजाकर रखते थे। आपका छपे चित्रों की चित्रावलियों, पुराने टिकटों, कला वस्तुओं, अखबारों की कतरनों, जैन-धर्म सम्बन्धी लेखों तथा समाचारों, सम्राट् की रजत-जयन्ती, राज्याभिषेक तथा शव-जुलूस सम्बंधी प्रकाशनों का संग्रह बड़ा ही अनुपम हुआ है जो अन्य कहीं नहीं मिल सकता।'
आप इंग्लैण्ड की रॉयल एसिएटिक सोसाइटी, इंडिया सोसाइटी, बंगाल एसियेटिक सोसाइटी, बिहार उड़िसा रिसर्च सोसाइटी, बंगीय साहित्य परिषद्, भंडारकर ओरियेन्टल एन्स्टीट्यूट, नागरी प्रचारणी सभा आदि संस्थाओं के माननीय सदस्य थे। बहुत दिनों तक आप मुर्शिदाबाद तथा लालबाग कोर्ट के औनररी मजिस्ट्रेट, अजीमगंज म्युनिस्पैलिटी के कमिश्नर, मुर्शिदाबाद डिस्ट्रिक बोर्ड के सदस्य एवं एडवर्ड कोरोनेशन स्कूल के सेक्रेटरी भी थे। आप आर्कियोलोजिकल डिपार्टमेन्ट के औनररी कोरेस्पोन्डेन्ट, जैन श्वेताम्बर एज्यूकेशन बोर्ड, बम्बई, राममोहन लाइब्रेरी, कलकत्ता तथा जैन साहित्य संशोधक समाज, पूना के आजीवन सदस्य थे।
आपने 31 मई, 1936 की संध्या समय कोलकाता में अपनी पार्थिव देह छोड़ महाप्रयाण किया। श्री पूर्णचन्द्र नाहर के विशाल पांडित्य, कठोरतम परिश्रम एवं अपूर्व शास्त्र ज्ञान की प्रशंसा में साहित्याचार्य श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी का एक श्लोक उल्लेखनीय है
विज्ञान विद्या विभव प्रसारमधीत जैनागम शास्त्रसारम्, चन्द्रं पुराकृत तमोत्कारं, त्वां पूर्णचन्द्रं शिरसा नमामि।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने नाहरजी के आदर्श व्यक्तित्व को इन पंक्तियों में अमर कर दिया है
बहुरत्ना वसुधा विदित और धनी भी भूरि, दुर्लभ है ग्राहक तदपि पूर्णचन्द्र सम सूरि।