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________________ जैन-विभूतियाँ 111 (सन् 1932 में प्रथम अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन के अवसर पर लिया गया चित्र) गया तब आपने 104 डिग्री बुखार होते हुए कलकत्ता से अजमेर तक रेल में सफर किया और समाज-सेवा से मुख न मोड़ा। इस अवसर पर आपका भाषण बहुत महत्त्वपूर्ण तथा समयोपयोगी हुआ था। आपको पुरानी वस्तुओं की खोज के साथ-साथ उनका संग्रह करने का बहुत शौक था। आपने बहुत अर्थ व्यय कर पुराने सुन्दर भारतीय चित्रों, भारत के विभिन्न स्थानों की प्राचीन मूर्तियों, सिक्कों, दियासलाई के लेबलों, हस्तलिखित पुस्तकों आदि का अभूतपूर्व संग्रह किया और उसे कलकत्ते में अपने कनिष्ठ भ्राता की स्मृति में बने हुए कुमारसिंह हाल में प्रदर्शित कर रखा है। अपनी माताजी के नाम पर आपने ई. सन् 1912 में श्री गुलाब कुमारी पुस्तकालय की स्थापना की। आज वह पुस्तकालय जैन ग्रंथों एवं पुरातत्त्व सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के लिए कलकत्ते के ही नहीं बल्कि समस्त भारतवर्षीय शोधार्थियों के लिए एक प्रसिद्ध संस्था बन गया है। आपमें संग्रह की प्रवृत्ति एक जन्मजात संस्कार ही था। छोटी-छोटी चीजों का भी वे ऐसा संग्रह करते थे कि वह कला की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण और दर्शनीय हो जाता था। आपके यहाँ मासिक पत्रों के मुखपृष्ठ का जो संग्रह है वह इस बात का प्रमाण है। इन मुखपृष्ठों को एकत्रित करने में आपने जो परिश्रम अर्थ और समय
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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