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जैन - विभूतियाँ
बाईस वर्ष की अवस्था में उन्होंने गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि के प्रवचनों की पाँच पुस्तकों का सुन्दर सम्पादन किया। 30 वर्ष के होते-होते संघ की साहित्य - शिक्षा - समाचारी आदि प्रवृत्तियों का मार्गदर्शन व निरीक्षण करने लगे। 45 वर्ष की अवस्था में आपने एक विशालकाय शोध-ग्रन्थ का निर्माण किया - "भगवान महावीर : एक अनुशीलन । " इस ग्रन्थ की अनेक विद्वानों व मुनिवरों ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की । अपनी शैली, अपने विषय और अपनी स्वतन्त्र अध्ययन विधि की उत्कृष्टता का प्रमाण देते हुए आपने इसे शोधग्रन्थ का स्वरूप प्रदान किया ।
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इसके बाद तो आपने विविध विषयों पर अनेक शोधग्रन्थ, प्रवचन व निबन्धों की लगभग 400 उत्कृष्ट पुस्तकें रची, जिनमें 36 प्रकाशित हो चुकी हैं एवं जिनका सम्पूर्ण जैन समाज में स्वागत हुआ।
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भगवान महावीर के अतिरिक्त देवेन्द्र मुनि ने "भगवान् ऋषभदेव", "भगवान अरिष्टनेमि", "कर्मयोगी श्री कृष्ण" एवं " भगवान पार्श्वनाथ” के जीवन-प्रसंगों पर प्रामाणिक सामग्री प्रस्तुत की । "जैन दर्शन : स्वरूप और विश्लेषण'' ग्रंथ में उन्होंने समग्र जैन दर्शन का प्रामाणिक एवं तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। "जैन आचार" के दो वृहद् खण्डों में श्रमण एवं श्रावकाचार पर विस्तृत एवं सर्वांगपूर्ण सामग्री दी है। "जैन आगम साहित्य, मनन और मीमांसा' नामक वृहद् ग्रंथ के माध्यम से आगमों की विषय-वस्तु एवं इतिहास का विशद् विवरण है। "कर्म विज्ञान'' नामक ग्रंथ के नौ भागों एवं लगभग 3500 पृष्ठों में "कर्म साहित्य" पर लिखे गये सैकड़ों ग्रंथों का मंथन, विवेचन एवं नवनीत प्रस्तुत किया है । " साहित्य और संस्कृति" एवं "धर्म, दर्शन, मनन और मूल्यांकन’” ग्रंथों में देवेन्द्र मुनि का बहुआयामी चिंतन उजागर हुआ है । इन शास्त्रीय विवेचन ग्रंथों के अलावा उन्होंने "जैन जगत के ज्योतिर्धर” एवं “पर्वों की परिक्रमा' नामक ऐतिहासिक ग्रंथ प्रस्तुत किए। यही नहीं उन्होंने जैन ग्रंथों के आधार पर युवा पीढ़ी के लिए लगभग 17 उपन्यास, पचासों कहानी संग्रह, निबंध संग्रह एवं सूक्तियाँ लिखी। उनके प्रवचनों के संग्रह भी श्रावक समाज में बहुत लोकप्रिय हुए।