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जैन-विभूतियाँ ग्राम जिला बाड़मेर में दीक्षा ग्रहण कर ली और धन्नालाल "देवेन्द्रमुनि" बन गया।
आपकी पूज्य माताश्री धर्म परायणा और विवेकशील थी। उनमें पाप-भीरूता, संयमनिष्ठा और जीवन के प्रति जागरूकता थी। ये ही संस्कार बहन सुन्दर और बालक धन्नालाल के जीवन में कल्पवृक्ष की भाँति फलित हुए। बहन सुन्दर ने पारिवारिक अवरोधों के बावजूद 12 फरवरी, 1938 को गुरुणी श्री मदन कुँवर जी एवं पूज्य महासती सोहन कुँवर जी के पास दीक्षा ग्रहण की। आपका नाम साध्वी रत्नश्री पुष्पवती रखा गया। आप परम विदुषी साध्वी रत्न हैं।
अपने पुत्र धन्नालाल को दीक्षा दिलाने के पश्चात् पूज्य माताजी तीजकुमारीजी ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। आपका नाम महासती प्रभावती जी रखा गया। आपका जीवन अत्यन्त निर्मल, ज्ञान, ध्यान, वैराग्यमय आदर्श जीवन था। ___ देवेन्द्र मुनि ने अप्रमत्त भाव से विद्याध्ययन प्रारम्भ किया। गुरु चरणों में सर्वात्मना समर्पित देवेन्द्र मुनि संस्कृत-प्राकृत, जैनागम व न्यायदर्शन आदि विविध विद्याओं में निपुणता प्राप्त करते गये। गुरु भक्ति से श्रुत की प्राप्ति होती है, समर्पण से विद्या का विस्तार होता है, यह बात देवेन्द्र मुनि के जीवन में शत-प्रतिशत सत्य सिद्ध हुई। उनकी विद्या निरन्तर बट वृक्ष की तरह विकसित और वृद्धिंगत होती गई। बीस वर्ष की अवस्था में तो देवेन्द्र मुनि ने हिन्दी साहित्य की भी अनेक परीक्षाएँ पास कर ली और वे हिन्दी में कविता व गद्य लिखने भी लगे। अनवरत विद्याध्ययन के साथ ही देवेन्द्र मुनि ने उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि के साथ राजस्थान, गुजरात-महाराष्ट्र आदि में विहार किया। अनेक विद्वान् व प्रभावशाली सन्तों से मिलन हुआ। उनके साथ तत्त्व चर्चाएँ हुईं। धीरेधीरे वे संघीय संगठन, समाज सुधार, शिक्षा-सेवा आदि से सम्बन्धित प्रवृत्तियों में अग्रणी रूप में भाग लेने लगे। उनकी बौद्धिक योग्यता व संगठन कुशलता के कारण श्रमण संघ में नवयुवक देवेन्द्र मुनि एक उदीयमान लेखक, विचारक और प्रवक्ता के रूप में प्रतिष्ठित हुए।