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जैन-विभूतियाँ है कि किसी भी तीर्थंकर में पुरुष वृत्ति यानि संघर्ष, संकल्प एवं आक्रमण का होना अनिवार्य है अत: तथ्यत: सन्यास लेते वक्त स्त्री शरीर होना सम्भव है पर तीर्थंकरत्व तक पहुँचते उसका भीतरी तल पर पुरुषत्व में रूपान्तरण हो ही जायेगा।
पूना में 19 जनवरी, 1990 के दिन रजनीशजी का पार्थिक शरीर शांत हो गया।
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