SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 99 जैन-विभूतियाँ तीखे प्रहारों से तिलमिला उठा। भगवान की अतिशय करुणा का लाभ लेकर कुछ अवांछित तत्त्व कम्यून के भीतर भी सक्रिय हो गए। तभी रजनीश जी को औरेगन स्टेट पुलिस (अमरीकी राज्य) द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें जेल के सीखचों में बन्द रखा गया। जिससे शनै:शनै: उनका स्नायु तंत्र खोखला हो जाए। उन पर बिना आधिकारिक अनुमति के अमरीका में रहने का आरोप लगाया गया। उनको यह आरोप स्वीकार कर लेने पर इस शर्त पर रिहा किया गया कि वे अमरीका छोड़कर अन्यत्र चले जाएँ। कहते हैं जेल में उनके खाने में हल्का जहर मिलाकर दिया जाता था। रजनीश जी अपने चन्द अनुयायियों के साथ अमरीका छोड़कर अन्य देशों के द्वार खटखटाने पर मजबूर हो गये। परन्तु अमरीका का साम्राज्यवादी शिकंजा इस कदर असरदार साबित हुआ कि उन्हें किसी देश ने पनाह न दी। अन्तत: रजनीशजी भारत चले आए। उनके शिष्यों की संख्या करीब पाँच लाख बताई जाती है जो विश्व के प्राय: हर देश में फैले हैं और प्रेमियों की संख्या तो अनगिनत है। हिन्दी में उनके प्रवचनों के करीब 450 ग्रंथ निकल चुके हैं एवं निरन्तर निकल रहे हैं। अंग्रेजी में भी करीब 350 ग्रंथ निकल चुके हैं एवं विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में उनके प्रवचन अनुदित हुए हैं। बम्बई-स्थिरावास के बाद के प्रवचनों के ऑडियो एवं वीडियो कैसेट भी उपलब्ध हैं। भारत में करीब 300 आश्रम हैं। मुख्यालय पूना में है। विदेशों में करीब 250 आश्रम या कम्यून हैं। धर्म चक्र प्रवर्तन का यह चरमोत्कर्ष है। बुद्ध पुरुषों की अमुत धारा में रजनीश के आगमन से एक नये युग का सूत्रपात हुआ। इस धारा को अक्षुण्ण रखने के लिए उन्होंने "ओशो' नाम धारण किया। ओशो सद्यस्नात धार्मिकता के प्रथम पुरुष हैं। वे अतीत की किसी धार्मिक परम्परा की कड़ी नहीं हैं। वे सबसे अनूठे संबुद्ध रहस्यदर्शी हैं। अपने प्रवचनों में उन्होंने मानव चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। बुद्ध, महावीर, मुहम्मद, जथुस्र, कृष्ण, शिव, शांडिल्य, नारद, जीसस, लाओत्से आदि अलौकिक महापुरुषों के
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy