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जैन - विभूतियाँ
आश्रम में रहने वाले अभारतीय सन्यासियों का अनुपात कई गुना अधिक हो गया था । भगवान एवं सन्यासियों पर शारीरिक आक्रमण, धर्मान्ध मठाधीशों की ईर्ष्या, सरकारी- विकास की दिनोंदिन बढ़ती दिक्कतों, पुलिस एवं कोर्ट केसों के शिकंजे - इन सबके कारण साधक बड़े मायूस हो रहे थे। इधर दमे के प्रकोप के कारण भगवान की अपने शिष्यों के बीच उपस्थिति का समय भी कम होता जा रहा था । 24 मार्च, 1981 से भगवान ने प्रवचन देना बन्द कर मौन धारण कर लिया ।
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जून, 1981 में भगवान को दमा की चिकित्सा के लिए उनके भक्त अमरीका ले गए। यह एकदम अचानक हुआ। वहाँ वे न्यूजर्सी स्थित चिद्विलास आश्रम में मेहमान हुए। जल्द ही नए आश्रम के लिए औरेगन स्थित 125 वर्ग मील वाला शुष्क जलवायु का निर्जन क्षेत्र 'मडी रेंच' खरीद लिया गया। यहां की शुद्ध शुष्क जलवायु एवं नवीनतम उपचारों एवं नियमित स्विमिंग पूल में तैरने से भगवान का स्वास्थ्य सुधरने लगा।
औरेगन स्थित "रजनीशपुरम'' आश्रम की हजारों एकड़ कृषि भूमि पर फसलें लहलहाने लगी। लाखों फलों के वृक्ष रोपे जा चुके थे, एक बड़ी डेयरी, नदी पर पुल, एक सुन्दर झील व कृष्णमूर्ति बाँध बनाया गया। पहले ही साल 35 करोड़ रुपए खर्च हुए। इस धरती पर उतरते स्वर्ग से आस-पास के अमरीका वासियों को ईर्ष्या होनी स्वाभाविक थी । कई मामले मुकदमें चलें, भगवान को अमरीका छोड़ने के लिए विवश करने की कोशिशें शुरु हुई ।
रजनीशपुरम का प्रथम विश्व महोत्सव जुलाई, 1982 में हुआ, जिसमें विश्व के कोने-कोने से दस हजार सन्यासी शामिल हुए। द्वितीय एवं तृतीय महोत्सवोपरांत चतुर्थ महोत्सव जुलाई, 1985 में हुआ जिसमें बीस हजार सन्यासियों एवं प्रेमियों ने भाग लिया। मई, 1981 से अक्टूबर 1984 तक निरन्तर मौन रहने के बाद भगवान ने फिर से अपने सन्यासियों के बीच बोलना शुरु किया । उनके प्रवचन संस्थापित धर्मों के विरुद्ध एक क्रांति के आह्वान से वेष्ठित थे । विशेषतः ईसाई समाज ऐसे