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________________ 97 जैन-विभूतियाँ की ग्रीष्म में राजस्थान में पहला ध्यान शिविर आबू में आयोजित हुआ। 1970 में रजनीश ने सन्यास दीक्षा देनी प्रारम्भ कर दी। फिर तो हर शिविर से 300 करीब मुमुक्षु सन्यास लेते रहे। अब उन्हें 'आचार्य' कहना छोड़कर 'भगवान' नाम से पुकारा जाने लगा था, जिसके लिए उनकी स्वीकृति इन शब्दों में थी-'"भगवान यानि वह जिसने स्वयं को जान लिया।" जबलपुर छोड़ने के बाद 4-5 वर्ष का पहला स्थिरवास बम्बई में हुआ। तब सक्रिय ध्यान चौपाटी के समुद्रतट पर खुली हवा में भगवान के सान्निध्य में होता था। __ 1974 के बसंत में भगवान पूना आ गए, भ्रमण बन्द हो गया। कोरे गाँव का भगवान का आश्रम एक बुद्ध क्षेत्र में परिवर्तित हो गया पश्चिमी देशों से आने वाले भगवान प्रेमियों का तांता लग गया। पूना शहर गेरूआ रंग से लहलहा उठा। पन्द्रह सौ सन्यासी हर वक्त भगवान के सान्निध्य में साधना करने लगे, एक नए धर्मचक्र का प्रवर्तन हुआ इस दौरान हर धर्म, हर मसीहा, हर आध्यात्मिक दर्शन-ग्रन्थ को माध्यम बनाकर भगवान के प्रवचन हुए। आश्रम धीरे-धीरे 2000 सन्यासियों के एक कम्यून के रूप में विकसित होने लगा।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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