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________________ 96 जैन-विभूतियाँ ही नदी के तीर स्थित जैन मंदिर था-यही उनका ध्यान केन्द्र बना। उन्हें तैराकी का शौक था व मकान के पिछवाड़े नंगे होकर कुएं की मेड़ पर नहाते थे। सड़क पर चलते बच्चे "नंगा आदमी'' कहकर आवाजें कसते। चर्चित हो गए तो पड़ोसियों के दबाव में यह मकान ही बदलना पड़ा। जल्द ही अपनी अद्भुत स्वनिर्भरता के कारण सबको आकर्षित भी करने लगे। आपने कभी किसी को अपना गुरू स्वीकार नहीं किया, हर चीज पर शंका की। बचपन से पुस्तकालय से प्रेम था। गाँधी, मार्क्स एवं राहुलजी के बौद्ध साहित्य का अध्ययन हाई स्कूल में आये तब आप कर चुके थे। अनुशासन के खिलाफ विद्रोह कर जल्द ही छात्र नेता भी बन गए। परन्तु उन्हें सर्वाधिक शौक नौका विहार एवं एकांत निर्जन स्थानों के भ्रमण का था। उनके व्यक्तित्व का अंग था-प्रकृति प्रेम। किशोर वय से ही उनके आत्मिक ध्यान साधना के प्रयोग शुरू हुए। मौल श्री (भंवरताल उद्यान, जबलपुर) के पेड़ पर चढ़कर ध्यान करते थे। एक रोज नीचे आ गिरे एवं परम चैतन्य के उन क्षणों में समाधि को उपलब्ध हुए-तब वे 21 वर्ष के थे। 21 मार्च, 1953 का वह दिवस 'सम्बोधि दिवस' माना जाता है। 1957 में दर्शन शास्त्र में एम.ए. की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में प्रथम रहे। तदुपरान्त संस्कृत महाविद्यालय, रायपुर में आचार्य पद पर नियुक्त हुए। एक वर्ष बाद महाकौशल कला महाविद्यालय में आचार्य पद पर जबलपुर आ गए। 1966 तक रजनीश वहीं सेवारत रहे। उनके व्याख्यानों में अन्य कक्षाओं के विद्यार्थी अपनी कक्षाएँ छोड़कर शामिल होते। यहीं रहते भारत भ्रमण प्रारम्भ हुआ। स्थानीय जैन समाज ने उन्हें सम्मानित किया। हर रोज प्रवचन होने लगे। साधनापथ, सिंहनाद, क्रांतिबीज आदि उनके व्याख्यानों के आदि प्रकाशन हैं। जल्द ही सारा भारत देश ही आचार्य रजनीश का कार्य क्षेत्र बन गया। एक अग्निवीणा छिड़ गई जिसने पूरे देश को हिला दिया। 1960 से 1968 तक रजनीश अलख जगाते रहे-सत्य की खोज पर मनुष्य के निकल पड़ने का आह्वान उनकी वाणी से गुंजरित होता रहा। 1964
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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