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________________ 88 जैन-विभूतियाँ बालक सरदार जब 6-7 वर्ष का था पण्डितरत्न मुनि श्री छोटेलाल जी महाराज के सत्संग का संयोग बना। जीवन की सारभूत जिज्ञासाएँ मन को उद्वेलित करने लगी। महाराज सा के संग पंजाब के रावी तट के एक गाँव में विचरण करते बालक सरदार ने एक रात एक अद्भुत स्वप्न देखा-एक दिव्य पुरुष उन्हें साधु जीवन अंगीकार करने के लिए प्रेरित कर अन्तर्ध्यान हो गया। तभी से बालक सरदार के मन में वैराग्य का बीज अंकुरित हुआ। सन 1942 भारत के दुर्धर्ष स्वतंत्रता संघर्ष का नियामक वर्ष था। महात्मा गाँधी जैसे अहिंसक संत के नेतृत्व में चारों ओर ब्रिटिश राज के खिलाफ 'भारत छोड़ो' का नारा बुलन्दी पर था। वही वर्ष बालक सरदार के जीवन में क्रांति का द्वार बना। 20 अप्रेल, 1942 के दिन जुगरांव में तत्कालीन श्रमण संघ के आचार्यश्री आत्मारामजी के हाथों श्री छोटेलालजी महाराज के निश्राय में बालक सरदार की भगवती दीक्षा सम्पन्न हुई। परिव्राजक सरदार मुनि सुशील कुमार बन गए। ___तरूण सन्यासी विद्या अर्जन में लगे। शनै:-शनै: नेतृत्व व वाक् शक्ति विकसित हुई। अहिंसा और सत्य को समर्पित साधु जीवन गांधीजी की अहिंसक राज्य क्रांति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। स्वदेशी, स्वावलम्बन और श्रमदान के आदर्श को जन-जन तक पहुँचाने यह परिव्राजक निकल पड़ा। उन्होंने शिक्षा और नारी स्वातन्त्रय के क्षेत्र में नए आयाम उद्घाटित किए। मंडी अहमदगढ़ चातुर्मास में उन्हें संत सुभाग मुनि के रूप में एक त्यागी और तपस्वी गुरू भाई का सम्बल प्राप्त हुआ। सन् 1945 में रूढ़ जैन परम्पराओं के विरूद्ध सुधार का बिगुल बजाने का श्रेय उन्हें ही मिला। लुधियाना में आचार्य आत्मारामजी महाराज के पदवीदान समारोह में पहली बार ध्वनि प्रसारक विद्युत यंत्रों (माइक्रो फोन/लाउड स्पीकर) का प्रयोग कर इस तरूण संत ने धर्म में रूढ़िवादिता और पुरातन पंथी ढोंग को चुनौती दी। उज्जैन में बाल-दीक्षा विरोधी अभियान की अगुआई की। उनके इस अप्रत्यासित कदम से परम्परावादी सहम उठे। दानवीर सेठ सोहनलाल दृगड़ ने उन्हें हिम्मत दी ''बाल
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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