SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 85 जैन-विभूतियाँ 23. महत्तरा साध्वी मृगावती जी (1925- ) जन्म : सरधरा (राजकोट), 1925 पिताश्री : डूंगरसी भाइ संघवी माताश्री : शिव कुंवर दीक्षा : 1938 पद/उपाधि : महत्तरा दिवंगति राजकोट के निकट सरधरा नगर में श्री डूंगरसी भाई संघवी की धर्मपरायण पत्नि श्रीमती शिवकुंवर की कोख से वि.सं. 1982 में एक बालिका ने जन्म लिया-नाम रखा गया भानुमति। बालिका अभी दो वर्ष की भी. न हुई थी कि सर से पिता का साया उठ गया। शीघ्र ही दो भाई एवं बड़ी बहन का भी देहान्त हो गया। माँ-पुत्री इस आघात से क्रान्त हो गए। संसार की असारता देखकर दोनों तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े। वि.सं. 1995 में दोनों ने भगवती दीक्षा ग्रहण की। भानुमति की आयु उस समय 13 वर्ष की थी। उनका नया नाम रखा गया-साध्वी मृगावती जी। - आपकी लगन और बुद्धि कौशल विलक्षण था। पं. छोटेलाल शास्त्री, पं. बेचरदास दोशी, पं. सुखलाल संघवी, पं. दलसुख भाई मालवणिया एंव मुनि पुण्यविजय जी के सान्निध्य में आपने भरतीय षड् दर्शनों एवं पाश्चात्य दर्शनों का गहरा अध्ययन किया। युगद्रष्टा आचार्य विजयवल्लभ सूरि ने आपको शासन प्रभाविका जानकर आशीर्वाद दिया। वि.सं. 2010 में कोलकाता में हुई सर्वधर्म परिषद् में आपने जैनधर्म का प्रतिनिधित्व किया एवं अपनी वक्तृता से चारों ओर धाक जमा दी। पावापुरी में आपका व्याख्यान 80000 की जनमेदिनी द्वारा तीन मील की दूरी तक ध्वनि विस्तारक से सुना गया। श्री मोरारजी देसाई, गुलजारीलाल नन्दा
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy