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________________ 84 जैन-विभूतियाँ द्वारा संचरित जैन तत्त्व-ज्ञान, व्यसन-मुक्ति अभियान एवं बुद्धिजीवियों को संस्कार-क्रांति की प्रेरणा ने आपको ‘आगम-पुरुष' का संवाहक बना दिया। डॉ. नेमीचन्द जैन ने इस विरुद की परिकल्पना का साकार रूप 'आगम-पुरुष' ग्रंथ संकलित कर सन् 1992 में उदयरामसर में आपको समर्पित एवं लोकार्पित किया। ____ आपके आचार्य-काल में कुल 59 संत एवं 310 सतियाँ दीक्षित हुई। आपके विचार एवं प्रवचन पुस्तकाकार प्रकाशित हुए, जिनमें समता दर्शन और व्यवहार, समीक्षण ध्यान और प्रयोग विधि, साधना के सूत्र, आचार्य नानेश : एक परिचय, समता क्रांति, अनुभूति नो आलोक, गुजरात प्रवास की एक झलक आदि उल्लेखनीय हैं। सन् 1999 में 'समता इंटरनेशनल' की घोषणा से जैन साधना के बहुमुखी सूत्रों का देश-विदेश में प्रसार अभियान शुरु हुआ। आप द्वारा अविष्कृत समीक्षण-ध्यान की आध्यात्मिक प्रक्रिया भारतीय चिंतन को बहुमूल्य योगदान है। सम्यक्त्व के लिए पराक्रम और संघर्ष नानालालजी की विशिष्टता थी। भ्रम और त्रुटि के अभाष होने पर वे आत्मस्वीकृति एवं आत्मशोधन के लिए तत्पर रहते थे। आपकी जन्मभूमि 'दांता' नगर आज एक तीर्थस्थल बन गया है। आचार्यश्री की प्रेरणा से प्रेरित "समता विकास ट्रस्ट'' ने वहाँ कला एवं विज्ञान की शिक्षा, सामान्य एवं चल चिकित्सा, सुसंस्कार एवं व्यसनमुक्ति एवं साधना-समीक्षण ध्यान हेतु अनेक योजनाओं को क्रियान्वित किया है। सन् 1998 के उदयपुर चतुर्मास से ही आचार्यश्री के स्वास्थ्य में गिरावट आई। उदयपुर में की कार्तिक कृष्ण तृतीया संवत् 2056 (सन् 1999) के दिन आप संथारा प्रत्याख्यान कर महाप्रयाण कर गये।
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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