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________________ 83 जैन-विभूतियाँ ग्राम में बलाई समाज को प्रतिबोध देकर उन्होंने हृदय-परिवर्तन की जीवन्त मिसाल कायम की। बलाई जैन बने। वे आज सुसमृद्ध एवं प्रसन्न हैं। इस हेतु स्कूलों, छात्रावासों की स्थापना और शिविर-सम्मेलनों का समय-समय पर आयोजन कर 300 वर्गमील क्षेत्र में फैले 600 ग्रामों के हजारों लोगों को व्यसन-मुक्त कर उन्हें संयमपूर्ण जीवन की ओर प्रेरित किया। यह अभूतपूर्व क्रांति आचार्यश्री का मानवता को उल्लेखनीय अवदान गिना जाता है। सन् 1970 में बड़ी-सादड़ी में आपने सामाजिक क्रांति का बिगुल फूंका। सतरह ग्रामों के प्रतिनिधयों को उदबोधन देकर उन्हें उन्नीस आत्मोन्मुखी प्रतिज्ञाएँ अंगीकार करवाई। आपने ध्वनि विस्तार यंत्र का प्रयोगारम्भ नहीं किया। प्रख्यात भौतिकी-विद्वान डॉ. दौलतसिंह कोठारी ने आचार्यश्री के चिन्तन का पूर्णत: अनुमोदन किया। आपने निरन्तर खादी वस्त्रों का उपयोग किया। वे पूर्णत: भारतीय सन्तत्व के प्रतीक थे। सन् 1971 में सरदारशहर में आपने साम्प्रदायिक एकता की दृष्टि से नया कदम उठाया। ''संवत्सरी'' मनाने में सम्पूर्ण जैन समाज एकमत हो सके और हमें अपनी परम्परा भी छोड़नी पड़े तो मैं किसी पूर्वाग्रह को आड़े नहीं आने दूंगा'' -आपके ये उद्गार एक संत की निश्छल विचारणा के द्योतक हैं। सन् 1981 में दांता में आचार्यश्री ने एक त्रिमुखी अभियान का श्रीगणेश किया जो आदिवासी जागरण, ब्रह्मचर्य और दहेज उन्मूलन द्वारा संस्कार क्रांति का कल्पवृक्ष बना। ''मैं कौन हूँ' के चैतन्य-सूत्र से प्रारम्भ कर आत्मोन्नति के मूल नौ सूत्रों का प्रवर्तन कर आपने जनमानस को उद्वेलित किया। सम्यक् जीवन की ये विधियाँ धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक उत्क्रांति की धारक थी। उदयपुर चातुर्मास की सफल परिणति स्वरूप वहाँ आगम, अहिंसा, समता एवं प्राकृत शोधसंस्थान की स्थापना हुई। सन् 1991 में आचार्यश्री ने समीक्षण ध्यान के प्रयोग से समाज में समूहगत चेतना-जागृति की दिशा में सफल प्रयास किया। आपके
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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