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जैन-विभूतियाँ
81 पाठशालाएँ, स्कूल व छात्रावास खुलवाये। श्री त्रिलोकरत्न स्थानकवासी जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड आपकी ही कल्पना का मूर्त रूप है।
आचार्य श्री जीवन के अरुणोदय से ही संगठन के प्रबल समर्थक थे। आपके स्पष्ट विचार रहे कि 'संगठन जीवन है, विघटन मृत्यु' । समस्त जैन सम्प्रदायों की एकता के संदर्भ में आप के हृदय में अपार पीड़ा थी। आप सदैव जैन एकता के लिए प्रयत्नशील रहे। ___आप में हृदय की उदारता, आदर्श चिन्तन, पुरुषार्थी जीवन, उदार वृत्ति और सत्य में दृढ़ता, विनम्रता, सबके प्रति आदर भाव, जैसे गुण थे जिन्होंने उन्हें महामानव बना दिया।
सन् 1987 में पूना के श्रमण संघ सम्मेलन में आपने अपने उत्तराधिकारी के रूप में देवेन्द्र मुनि जी को उपाचार्य एवं शिव मुनिजी को युवाचार्य घोषित किया। सन् 1992 में अहमदनगर में आप दिवंगत
हुए।
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