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________________ 78 जैन-विभूतियाँ 21. आचार्य आनन्द ऋषि (1900-1992) जन्म : चिंचोड़ी ग्राम (अहमदनगर), 1990 पिताश्री : देवीचन्द गुगलिया माताश्री : हुलासा बाई दीक्षा : ग्राम भिरी, 1913 आचार्य पद : अजमेर, 1963 दिवंगति : अहमदाबाद, 1992 युग पुरुष का जीवन नदी की तरह होता है। नदी का उद्गम स्रोत पतली धार के समान होता है, धार जैसे-जैसे गति करती है, अन्य स्रोत उसमें आ मिलते हैं और आगे चलकर विशाल रूप धारण कर लेता है। युग पुरुष भी प्रारम्भ में लघु, फिर विराट से विराटतर होता चलता है। उसका चिंतन युग का चिंतन हो जाता है। इसीलिए युग का प्रतिनिधित्व करने से ही वे युग पुरुष कहलाते हैं। आचार्य आनन्द ऋषि मूर्तिमंत युग पुरुष थे। वे जैन जगत की विमल विभूति थे, जन-जन की श्रद्धा के केन्द्र थे। उनका जीवन कमल की तरह निर्लेप, शंख की तरह शुभ्र एवं कुन्दन की तरह निर्मल था। उन्होंने समाज में नया विचार, नई वाणी एवं नया कर्म संचरित किया। महाराष्ट्र योद्धाओं एवं संतों की वीर भूमि रही है। संत ज्ञानदेव, नामदेव, तुकाराम, रामदास ने इसी कोख से जन्म लिया। इसी संत परम्परा की देन थे आचार्य आनन्द ऋषि। अहमद नगर के चिंचोड़ी ग्राम में धर्मनिष्ठ श्रावक श्री देवीचन्द जी गुगलिया की सहधर्मणी हुलासाबाई की कुक्षि से सन् 1900 में एक बालक ने जन्म लिया। गौर वर्ण एवं फूल की तरह खिला हुआ चेहरा। नामकरण हुआ-नेमीचन्द। बड़े होकर बालक के बाल सुलभ गुणों के साथ उसकी विलक्षण बुद्धि, वाणी-मिठास और अच्छी स्मरण शक्ति से सभी आत्मीय स्वजन प्रसन्न थे। उसकी
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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