________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ सारे गाँव को प्रीतिभोजन दिया । लेकिन उन्होंने स्वयं तो तपश्चर्या के निमित्त से मिलती हुई प्रभावना की वस्तुओं का भी नम्रतापूर्वक अस्वीकार किया !
सं. २०४९ में फा. सु. १३ के दिन शत्रुजय गिरिराज की ६ कोसकी प्रदक्षिणा एवं आदिनाथ दादाकी पूजा की । उसी वर्ष में चातुर्मास के अंतमें गिरिराज की छत्रछाया एवं उपकारी गुरुदेवश्री की निश्रामें उपधान तप करके मोक्षमाला का परिधान किया । श्रावक के १२ व्रतों में से कुछ व्रत-नियमों का स्वीकार किया । परिग्रह का परिमाण किया । सरकारी जीनमें कई वर्ष तक चौकीदार के रूपमें नौकरी करने के बादमें वे खेती करने लगे तब खेतीमें भी जीवदया पालन का सविशेष लक्ष रखने लगे।
खानदान कुलमें जन्मे हुए संतानों को भी आज के टी.वी. युगमें माँ - बापको चरण स्पर्श करके प्रणाम करने में लज्जा होती है, मगर ६२ मालकी उम्र के लालुभा को आज भी प्रतिदिन अपनी माँ को चरण स्पर्श करके प्रणाम करने में आनंद एवं गौरव का अनुभव होता है।
____ व्यवहार समकित को निर्मल बनाने के लिए उन्होंने शत्रुजय समेतशिखर, हस्तिनापुर, राजगृही, पावापुरी, चंपापुरी, बनारस आदि अनेक तीर्थों की यात्रा भक्ति भावसे करके अपने जीवन को धन्य बनाया है ।
जब भी ट्रेन्ट से विरमगाँव जाने का प्रसंग होता है, तब वहाँ जो भी जैन मुनिवर बिराजमान होते है उनको भावपूर्वक वंदन करके उनका प्रवचन सुनते हैं। चातुर्मास में वहाँ जो भी सामूहिक तपश्चर्या करायी जाती है उसमें वे अचूक शामिल होते हैं ।
धार्मिक सूत्रोंमें गुरुवंदन विधिके सूत्र एवं सामायिक विधि के सूत्र कंठस्थ कर लिए हैं।
प्रवचन आदि में जो भी आत्म हितकर बातें सुनने मिलती है उन्हें तुरंत आचरणमें लाने के लिए वे हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं । (सं. २०४२)में अंधेरी (मुंबई) में पर्युषण के दौरान अपने उपकारी गुरुदेवश्री के श्रीमुखसे 'क्षमापना' के विषयमें प्रवचन सुना एवं तुरंत अपने प्रतिस्पर्धी चेरमेन के वहाँ जाकर उससे क्षमा याचना की । यह देखकर चेरमेन भी