________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
सं. २०३७ में वैशाख महिने की किसी धन्य घड़ीमें ट्रेन्ट गाँव (ता.विरमगाम, जि. अहमदाबाद, गुजरात) के निवासी लालुभा को वांकानेर एवं टंकारा गाँव के बीचमें आये हुए जड़ेश्वर महादेव की धर्मशाला में नवकार महामंत्र समाराधक प.पू. पं. श्री महायशसागरजी गणिवर्य म.सा. (वर्तमानमें आचार्य श्री) का सत्संग प्राप्त हुआ ।
विहार करते हुए पूज्यश्री, आसपास में जैन स्थान न होने के कारण जड़ेश्वर महादेव की धर्मशाला में एक अहोरात्र के लिए ठहरे थे । भवितव्यतावश ट्रेन्ट गांव के सरपंच लालुभा भी अपने भानजे के हृदय के वाल्व के सफल ओपरेशन के बाद मनौती पूरी करने के लिए जड़ेश्वर महादेव के दर्शन हेतु आये थे । उपरोक्त जैन मुनिवर को देखकर प्रकृति के किसी अगम्य संकेत के अनुसार लालुभा अपने भानजे का स्वास्थ्य संपूर्ण ठीक हो जाय ऐसी भावना से पूज्यश्री का आशीर्वाद लेने के लिए गये । 'सवि जीव करूं शासन रसी' की भावनामें रमते हुए पूज्यश्रीने वात्सल्य पूर्ण वाणीसे उनको व्यसन त्याग के लिए प्रेरणा दी ।
'कम्मे शूरा सो धम्मे शूरा' इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए शैव धर्मानुयायी लालुभाने तुरंत हाथमें पानी लेकर शंकर एवं सूर्य देवताकी साक्षी से, प्रतिदिन १०० बीडियों का धूम्रपान करने के कई वर्षों के पुराने व्यसन को एक साथ हमेशा के लिए जलाञ्जलि दे दी।
उनकी ऐसी पात्रता देखकर पूज्यश्रीने भी यथायोग्य रूपसे प्रोत्साहित किया । फलतः चातुर्मास में पूज्यश्री के दर्शन हेतु लालुभा खास अहमदाबाद गये । भानजे का स्वास्थ्य संपूर्ण तया ठीक हो जाने से लालुभा की पूज्यश्री के प्रति श्रद्धा वृद्धिंगत होती रही । सं. २०३८ में पूज्यश्री का चातुर्मास जामनगरमें था तब लालुभा वहाँ ४ बार दर्शन हेतु गये थे । पूज्यश्री के साथ प्रश्नोत्तरी द्वारा शैवधर्म एवं जैनधर्म के तत्त्वों का रहस्य समझने की कोशिश की । महिने में दो बार एकादशी के दिन फलाहार युक्त उपवास करनेवाले लालुभा अब केवल उबाला हुआ अचित्त जल पीकर शुद्ध उपवास करने लगे। उन्होंने सात महाव्यसन, जमीकंद एवं रात्रिभोजन का हमेशा के लिए त्याग किया । सगे भाई की बेटी के शादी