________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ चलो, एकाशन कर लो।' उन्होंने कहा ' आता हूँ।' इतना कहकर वे अपने घरके एक कोनेमें जहाँ वे प्रतिदिन प्रभुजी की तस्वीर के समक्ष नवकार महामंत्र का जप करते थे वहाँ गये एवं अंतः प्रेरणा के अनुसार पद्मासन मुद्रामें बैठकर नवकार महामंत्रका स्मरण करते हुए केवल पाँच मिनिट में ही बिल्कुल स्वस्थता एवं साहजिकता से इच्छामृत्यु पूर्वक देहपिंजरका त्याग किया ! उस समय दोपहर को विजय मुहूर्त का समय था । उनकी पुत्रवधूने उस वक्त उनके मस्तक पर अचानक प्रकाश पुंजका दर्शन किया था ।
प्रिय पाठक ! देखा न ! ऊनोदरी पूर्वक केवल २ ही द्रव्यों से आजीवन एकाशनकी प्रतिज्ञाका कैसा अद्भुत प्रभाव है !
सचमुच जैन धर्म कितना वैज्ञानिक है । उसके प्रत्येक विधिनिषेध के पीछे आत्मिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार के आरोग्य का राज समाया हुआ है। होटलें, रेस्टोरन्ट, भेलपुरी आदि की लारियाँ, फास्टफुड एवं मांसाहार के धूम प्रचार के इस युग में मानवजाति अगर जैन धर्म के आहार विज्ञान को समझकर आचरण में लाये तो अरबों रूपयोंकी दवाएँ एवं अस्पतालों के बिना भी समाज का द्रव्य भाव आरोग्य कितना सुधर जाय ?
सामाजिक स्तर पर यह बात जब शक्य बने तब, लेकिन व्यक्तिगत जीवनमें तो इस बात का आचरण करने के लिए तो हम सभी स्वतंत्र है न? तो चलो, अच्छे कार्यमें विलंब क्यों ?
नवकार महामंत्र को सिद्ध करनेवाले सरपंच लालुभा मफाजी वाघेला
. श्रद्धा संपन्न श्रोता एवं अनुभवी सद्गुरु का सुयोग कलिकालमें भी कैसे अदभुत परिणाम ला सकता है, यह हम लालुभा के प्रत्यक्ष दृष्टांत से समझेंगे।