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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ करने की प्रतिज्ञा म.सा. के पास से ली एवं बाजरी की रोटी और छाछ इन दो ही द्रव्यों से दो दिन एकाशन किये । इस से मुझे बड़ी स्फूर्ति का अनुभव हुआ। फलत : मेरी श्रद्धा इतनी सुदृढ हो गयी कि तीसरे दिन मैंने म.सा. के श्रीमुखसे आजीवन केवल दो ही द्रव्योंसे एकाशन करने की प्रतिज्ञा ले ली ।
म.सा.ने बहुत प्रसन्नतापूर्वक आशीर्वाद एवं यथायोग्य हितशिक्षा के . साथ प्रतिज्ञा दी । इस बातको आज ७० साल हो गये । फिर भी आज दिन तक एक भी बार इस नियम का भंग होनेका अवसर नहीं आया है। केवल बाजरी की रोटी एवं छाछ अथवा हरी मिर्च इन दो ही द्रव्यों से सानन्द एकाशन हो रहे हैं । परिणाम स्वरूपमें आज ८५ सालकी उम्रमें भी आंख-कान, हाथ-पाँव आदि सभी इन्द्रियाँ एवं अवयव पूर्णतया नीरोगी हैं । शिरदर्द एवं बुखार कैसा होता है उसका मुझे अनुभव नहीं है। आज भी यहाँ से ५ कि.मी. दूर तक पैदल चलकर ही खेतमें जाता हूँ। यह सब प्रभाव जैन धर्म के एकाशन तपका है। इसीलिए मैं जैन साधु भगवंतों के प्रवचन अचूक सुनता हूँ।"
एक ब्राह्मण के मुखसे जैन धर्म एवं जैन साधु भगवंतों के लिए ऐसे श्रद्धा एवं अहोभाव युक्त उद्गार सुनकर म.सा. को बहुत खुशी हुई। उन्होंने उस ब्राह्मण की बहुत ही अनुमोदना की । बादमें वे जहाँ भी जाते वहाँ प्रवचन में इस प्रसंग का वर्णन करते, जिसे सुनकर श्रोता भाव विभोर बन जाते थे एवं अपने जीवनमें इसका आंशिक भी आचरण करने के लिए कटिबद्ध हो जाते थे।
इस घटना के ६ वर्ष बाद सं.२०३६ में उपरोक्त म.सा. आणंद के पास वड़ताल गाँवमें प्रवचन में इस दृष्टांत का वर्णन कर रहे थे । तब योगानुयोग अडालज गाँवके एक श्रावक भी किसी कार्यवश वड़ताल आये थे एवं प्रवचन सभामें उपस्थित थे । उन्होंने कहा कि 'म.सा. ! यह दृष्टांत तो हमारे गाँवका है' । तब म.सा.ने पूछा कि 'वर्तमान में उनकी क्या खबर है ? श्रावकने प्रत्युत्तर दिया कि '१५ दिन पूर्व ही उनका स्वर्गवास हुआ है । उस दिन उनकी पुत्रवधूने मध्याह्न कालमें उनसे कहा कि 'पिताजी