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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 595 भा.सु. 15 के दिन शंखेश्वरजी तीर्थ में आयोजित बहुमान समारोह में उपस्थित रहने के लिए आमंत्रण भिजवाया गया है उससे मेरी आत्मा रोमाञ्चित हो गयी है / यह प्रसंग मेरे लिए अत्यंत उपकारक साबित होगा। मेरे जैसे अजैन के जीवन में भी ऐसा अनमोल मौका आयेगा और शंखेश्वरजी महातीर्थ की यात्रा एवं आपके दर्शन-वंदन होंगे उसकी कल्पना भी नहीं थी। मैं धन्य धन्य हो गया / बस, अब सम्यके धर्म की आराधना में मेरा मन अधिक से अधिक लीन बन सके ऐसे शुभाशीर्वाद की अभिलाषा रखता हूँ। (दृष्टांत नं. 25 - रतिलालभाई गांधी प्रजापति (भरूच)) _ 'बहुरत्ना वसुंधरा' भाग-२ में आपने मुझे स्थान दिया है, मगर मैं तो कुछ भी नहीं हूँ, प्रभुका बालक हूँ / जिसने मुझे दिया है उसका मुझे सदुपयोग करना है / मेरा कुछ भी नहीं है, जो कुछ भी है वह सब परमात्मा का है / उसके आदेश के अनुसार जीवन जीना मेरा कर्तव्य है। मैं तो निमित्तमात्र हूँ / आपकी चरणरज (दृष्टांत नं. 22 - अमृतलाल राजगोर (वालवोड़-गुजरात)) 'बहुरत्ना वसुंधरा' भाग-२ में आपने मेरे जीवदया के कार्य की अनुमोदना की है मगर मैं उसके पात्र नहीं हूँ। आपश्री ने चौदह . राजलोक के सभी जीवों को अभयदान दिया है। आपके पास मैं बिन्दुमात्र हूँ / सत्कार के द्वारा में अहंकारी न बचें किन्तु जीवदयाअभयदान - जिनशासन एवं महात्माओं की सेवा का मेरा जीवनकार्य अखंड रूपसे चालु रहे ऐसे शुभाशीर्वाद की अभिलाषा रखता हूँ। (दृष्टांत नं. 133 - अशोकभाई शाह - पूना (महाराष्ट्र)) जिन श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की करोड़ बार खमासमण देकर वंदना एवं जप मैंने किए उन्हीं भगवान के महान तीर्थ में वृद्धावस्था में आनेका मुझे मौका मिल रहा है, इसलिए मैं अपने
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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