________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 593 (कच्छ-गोधरा), झवेरचंदभाई शाह (कच्छ-कांडागरा), भाईलाल बी. मामतोरा (नडियाद), शांतिलालभाई दलीचंद (राजकोट), जयचन्द्र पी. शाह (बड़ौदा), सुरेशचंद्रभाई शिवराम (निपाणी-कर्णाटक), केसरमलजी वोरा (गोंदा-महाराष्ट्र) मदनलाल बोहरा (बाड़मेर-राजस्थान), महासुखभाई गोसालिया (अहमदाबाद), वीरचंदभाई पारेख (मद्रास) दामजीभाई वीरजी (नरेडी-कच्छ), दामजीभाई खीमजी (घाटकोपर-मुंबई), नेमिचंद जैन (दिल्ली), मणिबाई रामजी शाह (मदुराई), मयणाबहन शाह (बारामती-महाराष्ट्र) दक्षाबहन दिलीपभाई (डहाणुमहाराष्ट्र), रेखाबहन शाह (गांधीधाम-कच्छ) 300 अनुमोदना बहुमान समारोह एवं किताब के विषयमें सन्माननीय आराधकरलों के नम्रता एवं हर्षसभर दगार ___ आपके द्वारा आयोजित अनुमोदना-बहुमान समारोह का कार्यक्रम देखकर आँखें चकाचौंध हो गयीं / वर्तमानकाल के विरल विभूति समान आराधक रत्नों का दर्शन करके एवं परिचय सुनकर इतनी दूरी पर आने का सार्थक हो गया / मुझ जैसी विकलाँग को श्री शंखेश्वर दादा की प्रथम पूजा का लाभ भी बिना बोली से मिल गया। परमात्मा की कितनी असीम करुणा है / ... सन्मान का स्वीकार करते हुए शर्म आती थी क्योंकि मेरे पास सद्गुणों का कोई विशिष्ट खजाना नहीं है / सचमुच सत्कार-सन्मान तो प्रभुका होना चाहिए / बहुमान में मिली हुई सुन्दर किताबों का अध्ययन चालु है / परिवारवाले भी सभी कहते हैं कि सचमुच प्रोग्राम बहुत ही अच्छा था / (दृष्टांत नं. 182 - मयणाबहन शाह (बारामती-महाराष्ट्र)) पूर्वकर्मों के उदय से मेरा जन्म नाई कुल में हुआ है / यदि मेरा जन्म जैनकुलमें हुआ होता तो मैं भी जन्म से अजैन मगर आचरण से जैन धर्मकी भावोल्लासपूर्वक आराधना करते हुए सार्मिक भाई बहिनों बहुरत्ना वसुंधरा - 3-38