________________ 592 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 "आपने भेजी हुई किताब यहाँ (पालिताना) में मुनिवरों के हाथों में घूमती ही रहती है / मैं उनसे वापस मांग भी नहीं सकता। कृपया पुनः किताब भिजवाईए / " _ किताब को पढने का प्रारंभ करते ही पूरी किए बिना नीचे रखने का दिल ही नहीं होता है / 'हम इस किताब में से कई दृष्टांत संक्षेप में हमारे मंदिर के बोर्ड पर हररोज लिखते हैं / ' . इस किताब को पढने के बाद हमारे ग्रुप के कई भाइओंने विविध प्रकार के व्रत-नियम-प्रत्याख्यान किये हैं / "आराधकों के सद्गुणों को किताब में प्रकाशित करके एवं उनका बहुमान करवाकर आपने दुगुनी अनुमोदना की है, ऐसा सत्कार्य शायद प्रथम ही हो रहा है, उसकी भूरिशः हार्दिक अनुमोदना !... . ' यह पुस्तक आपकी गुणानुरागिता की द्योतक है तो सम्प्रदायवाद की बू फैलानेवालों के लिए चेतावनी भी, क्योंकि इसमें विशाल वटवृक्ष की सभी शाखाओं का बिना भेदभाव समावेश है / इस पुस्तक के बारे में लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं / यह किताब केवल हमारे लिए : ही नहीं, हमारी भावी पीढी के लिए भी प्रेरणास्रोत बनेगी। ____ आपके द्वारा संपादित 'बहुरत्ना वसुंधरा' किताब भारत वर्ष के उस छिपे हुए महान आराधकरत्नों को उजागर करके प्रकाशित करती है जिन्हें हम न आज तक सुन पाये और न ही देख पाये / पुस्तक पढकर हम उन महान आत्माओं के प्रति नत मस्तक हुए, जिन्होंने अपने जीवन के मध्य भाग को जवानी में ही तप आराधना में जोड़कर पूर्वकर्मो की निर्जरा हेतु संघर्ष किया और कर रहे हैं। धन्य है ऐसी महान आत्माओं को जिनके चिन्तन मात्र से कर्म निर्जरा आरंभ हो जाती है और हमारे दिलमें ऐसी विशिष्ट आराधना करने की भावनाएं जाग्रत करती हैं / ___अनुमोदक : मिलापचंदजी बाफना (गांधीधाम-कच्छ), चीमनलालभाई पालीतानाकर, नंदलालभाई देवलुक (भावनगर), लालभाई ‘संतिकर' के आराधक (अहमदाबाद), पंडित श्री नानालालभाई (दादर), विसनजीभाई प्रेमजी (कच्छ-लुणी), सुभाषचंद्रभाई मोदी (राजकोट) भोगीलालभाई माणेकचंद