________________ 590 ___ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 के तेजस्वी सितारों का परिचय कराती हुई इस किताब को पढने से अहोभाव और प्रमोदभाव जाग्रत हो जाता है !... चौथे आरे के दृष्टांतों पर आज की नयी पीढी को शंका होती है तब कलिकाल के ऐसे आराधकों के दृष्टांत बहुत ही प्रेरक बनेंगे / इन दृष्टांतों से प्राचीन दृष्टांत भी श्रद्धेय बन सकेंगे!... किताब का एक एक पन्ना उलटते ही रोमाञ्च खड़े हो जाते हैं और दिल में बारबार ये पंक्तियाँ गुंजन करती हैं - 'कलिकाले पण प्रभु तुज शासन वर्ते छे अविरोधजी' / अनुमोदना - बहुमान समारोह के समाचार प्रत्यक्षदर्शी लोगों के मुँह से सुनकर मन मयूर नाच उठा !.. इस कार्य से आपके हृदय में रहा हुआ गुणानुराग और प्रमोदभाव का अनुभव किया है। आपका प्रयास सुसफल है। ... इत्यादि !.. [सा. सर्वोदयाश्रीजी, सा. वाचंयमाश्रीजी, सा. रत्नचूलाश्रीजी, सा. शुभोदयाश्रीजी, सा. दिनमणिश्रीजी, सा हरखश्रीजी, सा. जयलक्ष्मीश्रीजी, सा. धैर्यप्रभाश्रीजी, सा. वीरगुणाश्रीजी, सा. महोदयश्रीजी, सा. अर्हत्किरणाश्रीजी, सा. कल्पपूर्णाश्रीजी, सा. सुनंदिताश्रीजी, सा. चन्द्रप्रभाश्रीजी, सा. चारप्रभाश्रीजी, सा. ॐकारश्रीजी, सा. मलयप्रभाश्रीजी- सा. मेस्प्रभाश्रीजी, सा. सुभद्राश्रीजी, सा. चंपकलताश्रीजी, सा. सूर्यशाश्रीजी, सा. निर्जराश्रीजी, सा. त्रिलोचनाश्रीजी, सा. सुनंदाश्रीजी, सा. निर्मलाश्रीजी, सा. कौशल्याश्रीजी, सा. जिनेन्द्रश्रीजी, सा.पद्मरेखाश्रीजी, सा. रेवतीश्रीजी, सा. जयवंताश्रीजी, सा. देवानंदाश्रीजी, सा. वीतरागमालाश्रीजी, सा. मंजुलाश्रीजी, महासती उज्जवलकुमारीजी, महासती वीरमणिबाईजी, तृप्तिबाई महासतीजी, नीलाबाई महासतीजी, कविताकुमारी महासतीजी, योगिनीकुमारी महासतीजी, तारिणीबाई महासतीजी, चैतन्यदेवी महासतीजी ... इत्यादि / ] भावक - प्राविकाओं के अनुमोदना- उदगार 'पना फिरे, मोती झरे' इस उक्ति के अनुसार 'बहुरत्ना वसुंधरा' किताब में वर्णित एक एक दृष्टांत के पठन से आत्मा के अध्यवसायों