________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 विविध गच्छ समुदायों के साध्वीजी भगवता के 298| / अनुमोदना पत्रों का संक्षिप्त सारांश ___'बहुरत्ना वसुंधरा' किताब के द्वारा पाँचवे आरे में भी चौथे आरे के आराधकों का दर्शन होता है !... अनेक जीवों के जीवन में 'टींग पोईन्ट' लानेवाले दृष्टांत इस किताब में संग्रहीत हैं !.. मूर्तिमान गुणानुराग रूप यह कार्य प.पू.आ.भ. श्रीलब्धिसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय को खास करने योग्य कार्य आपश्री ने पूरा किया है उसकी हार्दिक अनुमोदना / पू. गुरुदेवश्री कहते थे कि, अपेक्षा से समुदाय तो उसका रहता है जो एक दूसरे का गुणानुवाद करता है / गच्छ की-समुदाय की बात तब तक करना जबतक शासन की बात रहे / समुदाय की भक्ति अवश्य करनी चाहिए मगर मोह नहीं रखना चाहिए। सभी आचार्य भगवंतों का शासन में योगदान है !.. आपश्री का यह कार्य प्रमोदभावना का प्रचारक, प्रसारक और प्रभावक है !... आराधकों के नाम एवं पते के साथ परिचय देने से पाठकों की श्रद्धा बढती है / इस किताब की हजारों-लाखों प्रतियाँ प्रकाशित करके पुत्सक विक्रेताओं द्वारा वितरित करें जिससे जिनशासन की खूब प्रभावना होगी !... इस किताब की खुली किताब परीक्षा का आयोजन करेंगे तो बहुत प्रचार होगा !.. ऐसी किताब प्रतिवर्ष प्रकाशित करें और जैन मासिक पत्रों में इसकी जाहिरात भी करें !.. आज के युवावर्ग को धर्म के प्रति सन्मुख करने के लिए यह किताब अत्यंत उपयोगी है !.. इस किताब को श्राविकाओं के समक्ष व्याख्यान में पढ रही हूँ, जिसे सुनकर वे आश्चर्यचकित हो जाती हैं और स्वयमेव विविध व्रत-नियम ग्रहण करती हैं / हमारे हृदय से भी अहोभाव के उद्गार निकल जाते हैं कि- 'अहो हो ! ऐसे ऐसे अनमोल आराधकरत्न आज भी इस पृथ्वी पर विद्यमान हैं !.. आराधकों के गुणगान करने के लिए एवं आपश्री की अनुमोदना करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं !... किताब पढकर रोमाञ्च खड़े हो गये / अंतःकरण से पुकार उठी कि-'हे आत्मन् ! तेरी भी इतनी शक्ति होने पर तू इतना कायर क्यों है ?... ' एक एक दृष्टांत पढते हृदय गद्गद हो जाता है !... जैन शासन के नभोमंडल