________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 587 उज्जवल आत्माओं को ढूंढने के लिए मानव महासागर का कितना मंथन करना पड़ता होगा ! 'यत् सारभूतं तदुपासनीयम्'। आप की गुणदृष्टि के माध्यम से आपने सबको कराया / धन्य है आप श्री के शुभ पुरुषार्थ को / अनेक भव्यात्माएँ इस किताब के दृष्टांतों को पढकर अपनी जिन्दगी का मार्ग भी निर्मल बनायेंगे और आपश्री उसका शुभ निमित्त बनोगे / _ - जनक मुनि 'बहुरत्ना वसुंधरा' पुस्तक के स्वरूप में आप की कृपा प्रसादी की प्राप्ति द्वारा धन्यता का अनुभव किया / पुस्तक तैयार करने में आपश्री ने प्रबल और सफल पुरुषार्थ किया है / प्रत्येक वाचक को इससे प्रेरणा प्राप्त होगी / आपकी प्रत्येक किताब अवश्य भिजवाने की कृपा करें / पढकर यहाँ के ज्ञानभंडार में जमा करवायेंगे ताकि चतुर्विध श्री संघ को स्वाध्याय में उपयोगी बनेगी ! आभार के साथ हार्दिक सुखशाता / / __- भास्कर मुनि प्रस्तुत पुस्तक के लिए आपश्री का बेजोड़ परिश्रम अत्यंत अनुमोदनीय है / पढनेवालों को धर्म की लगन लगाने वाला यह साहित्यरत्न है इसमें संदेह नहीं / -ताराचंदमुनि ____ 'बहुरत्ना वसुंधरा' मिली ! धन्य है ऐसे आराधक आत्माओं को, जो आत्मा की परम शांति के लिए अंतर्मुख बनकर विशिष्ट आराधना कर रहे हैं / कच्छ-बिदड़ा में आपकी सन्निधि में बीता हुआ चातुर्मास आज भी याद आ रहा है / उसका कारण कवियोंने बताया है कि एक आवे सुख उपजे, एक आवे दुःख थाय' 'एक परदेश गयो न वीसरे एक पासे बेठो न पोषाय / ' आप भी दूर होते हुए भी हमारे दिल से बहुत नजदीक हो, हृदय में हो / ___ - मुनि विरागचन्द्रजी