________________ 586 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 किया है। आपश्री का साहित्य यहाँ के श्रमण स्थविरालय - ज्ञानभंडार में रखेंगे / साधु-साध्वीजी और यात्रिक भी पढने के लिए ले जाते हैं। - मुनि अमरेन्द्रसागर उत्तम जनों के गुणानुवाद द्वारा सर्व जीव गुणवान बनें इसी एकमात्र शुभ आशय से किए गये आपश्री के शुभ पुरुषार्थ की खूब खूब अनुमोदना / 'गुणी च गुणरागी च सरलो विरलो जनः' गुणवान एवं गुणानुरागी हों ऐसे सरल मनुष्य विरल ही होते हैं / - गणि अक्षयबोधिविजय सचमुच यह किताब बेनमून और अत्यंत अनुमोदनीय है। उत्तम गुणों के धारक आत्माओं की अनुमोदना करता हुआ प्रायः यही प्रकाशन होगा। - मुनि अणमोलरत्नविजय 297|| स्थानकवासी महात्माओं के अनुमोदना पत्र / __अभी अभी आपके द्वारा प्रेषित 'बहुरत्ना वसुंधरा' भाग-२ की एक किताब मिली / अभी किताब पढी नहीं है, किन्तु पुस्तक के शीर्षक से और कुछ पन्ने इधर उधर पलटे हैं उससे यह अनुभूति हुई कि पुस्तक बहुत ही उपयोगी एवं जन जन के लिए प्रेरणादायक है / कृपया इसके भाग 1-2-3 भी अवश्य भिजवायें / चारों भाग पढकर उस पर विस्तार से अभिप्राय लिखकर भिजवायेंगे / ___- 'आपका देवेन्द्र मुनि' (स्था. आचार्य) आपकी ओर से प्रेषित 'बहुरत्ना वसुंधरा' ग्रन्थ प्राप्त होते ही आपश्रीके गुणग्राही उज्जवल आत्मा के प्रति अत्यंत अनुमोदना और अहोभाव जाग्रत होता है / आप श्री ने जो प्रयास किया है वह संसार चक्र के जन्म - मृत्यु की परंपरा को समाप्त करनेवाला है / रत्न जैसे