________________ 584 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 'बहुरत्ना वसुंधरा' भाग-३ में चलते फिरते तीर्थ स्वरूप दृष्टांत नं. 12-3 प्रातः काल में उठने के साथ ही आँखों के सामने आ जाते हैं और भावपूर्वक वंदना हो जाती है। दृष्टांतों को पढते पढते एक ओर हर्ष के अश्रु तो दूसरी ओर अपनी शिथिलता को देखकर दुःख के अश्रु निकल जाते हैं / सोचता हूँ - कहाँ वे महान आत्माएँ और कहाँ मैं ? पंचसूत्र का प्रथम सूत्र कई सालों से प्रतिदिन एक बार बोलता हूँ, उसमें भी इस पुस्तकमें वर्णित दृष्टांतों को मानस चक्षु के सामने रखकर अनुमोदना के द्वारा कर्मनिर्जरा करने का बल मिलेगा / आपश्रीने वर्तमानकालीन विशिष्ट आराधकरत्नों के अत्यंत अनुमोदनीय, प्रेरक और आश्चर्य प्रद दृष्टांतों का संग्रह करके सकल श्री संघ के समक्ष प्रस्तुत करके महान उपकार किया है। - - मुनि रत्नधोषविजय 'बहुरत्ना वसुंधरा' को साद्यंत पढा, सोचा और मनन किया / कई दृष्टांतों को पढते पढते आँखों से हर्षाश्रु टपक पड़े तो कुछ दृष्टांतों को पढ़ते समय अपनी न्यून दशा के लिए दुःखाश्रु भी निकल गये / शायद ऐसे भावविभोर करनेवाले दृष्टांतों को पढने के समय विपुल कर्मनिर्जरा का लाभ हुआ होगा / लाक्षणिकताएँ निम्नलिखित देखने को मिली / ब्रह्मचारीओं, तपस्वीओं, बालकों, प्रज्ञाचक्षुओं, जीवदयाप्रेमीओं, आत्मसाधकों... इत्यादि का सुंदर विभागीकरण किया गया है / उदारदिल से लिए हुए श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के विविध गच्छों के साधकों के दृष्टांत, अन्य गच्छ-सम्प्रदायों के आराधकों के दृष्टांत एवं उनके नामोल्लेख और एड्रेस के साथ की हुई गुणानुमोदना, आपश्री की विशिष्ट सौजन्यता, सहृदचिता, उदारता, एवं गुणानुरागिता की द्योतक है। अनेकजनप्रियता के द्वारा शासन प्रभावक कार्यों का सर्जन होता है, जिस के लिए आपश्री ने बहुत अच्छी तरह से जिम्मेदारी को निभाया है ऐसा लगता है / पुनः पुनः हार्दिक अनुमोदना और वंदना / - मुनि जयदर्शनविजय