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________________ 580 ___ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 'बहुरत्ना वसुंधरा' किताब मिली है / अतीव आनंद हुआ / किताब के दृष्टांत पात्र आराधक महानुभावों की भूरिशः हार्दिक अनुमोदना / आराधकों के बहुमान का कार्यक्रम आयोजित हुआ है वह भी बहुत प्रशंनीय है। - गणि वीरभद्रसागर ___'श्री जिनशासन दर्शित सम्यक् प्रमोद भावना प्राप्त करके 'गुणीजनों का गुणगान करने में गच्छ-समुदाय आदि का भेदभाव नहीं रखना चाहिए,' यह बात आपने सिद्ध करके दिखलायी है और छिपे हुए रत्नों को प्रकाश में लाने का अनमोल कार्य किया है यह अत्यंत अनुमोदनीय है। - गणि राजयशविजय _ 'बहुरत्ना वसुंधरा' भाग 3-4 मिल गये हैं / संग्रह बहुत ही अच्छा किया है / पढने से आराधना के लिए प्रोल्लसित भाव आ जाय ऐसे दृष्टांत हैं / अनुमोदना - बहुमान समारोह भी सुंदर हुआ, यह समाचार 'संदेश' अखबार से अवगत हुए / उपबृंहणा भी दर्शनाचार का एक आचार है। - पंन्यास पद्मसेनविजय आपके द्वारा संपादित 'बहुरत्ना वसुंधरा' भाग 1 से 4 अलग अलग एवं संयुक्त पुस्तक के रूपमें मिले / अनेक वर्षोकी आपकी साधना का यह परिणाम है / कोने कोने में से रत्नों को खोज खोजकर समाज के समक्ष रखनेका अतिस्तुत्य प्रयास किया है, जिससे अनुमोदना के द्वारा अनेक लोग निर्जरा के भागी बनेंगे / समाज के समक्ष अद्भुत आदर्श खड़ा होगा और गुणवानों का उचित गौरव होगा / वर्तमान समय में भी इस शरीर से कितनी साधना शक्य है उसका प्रमाण मिल जायेगा / इस * प्रशस्य प्रयास के द्वारा आप तो बिना प्रयास से इन सारे गुणों के सहभागी
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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