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________________ 572 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 ही नहीं है। आपके गुणानुरागिता गुणने मुझे गुणग्राही बना दिया है, ऐसा कृतज्ञता से लिखते हुए मुझे बहुत ही आनंद हो रहा है / आपकी आराधना आपको सर्वोत्कृष्ट गुणों का भाजन बनाये यही मंगल कामना है। - आ. विजयजगवल्लभसूरि 'बहुरत्ला वसुंधरा' भाग-२ मिला है / सप्रेम स्वीकार किया है। पुस्तक के पत्रांक 64 पर देवजीभाई और नानजीभाई -बंधु युगल का दृष्टांत है, उनका बहुत सुंदर अनुभव 5 वर्ष पूर्व हम जब गांधीधाम गये थे तब हमें भी हुआ था / गांधीधाम से पूर्व के एक गाँव में जैनों के घर नहीं हैं, अतः हम भचाउ से व्यवस्था करवाकर निकले थे। गांधीधाम में किसी को खबर भेजी नहीं थी। फिर भी देवजीभाई एवं नानजीभाई को किसी तरह से मालूम हो जाने से वे गोचरी लेकर स्वयं लाभ लेने के लिए आये थे। गांधीधाम में भी उनका बहुत ही सुंदर अनुभव हुआ था। उनकी प्रसंशा-अनुमोदना गाँव-गाँव में हो रही थी। - आ. विजयमहानंदसूरि - आ. विजयमहाबससूरि 'बहुरत्ना वसुंधरा' का दूसराभाग दो दिन पहले ही मिला है, और कल जाहिर प्रवचन में उसमें से 3 दृष्टांत प्रस्तुत करने पर श्रोता अत्यंत भावविभोर हो गये थे / किताब के लिए आपने अच्छा परिश्रम किया है। आपकी ज्ञानोपासना सराहनीय है / किताब छपवाने के लिए दव्य व्यय भी बहुत होता होगा / यहाँ के (खीमत) श्री संघ को ज्ञानखाते में से रकम भिजवाने के लिए प्रेरणा करता हूँ। शासन के प्रति आपकी भावना एवं पुरुषार्थ अनुमोदनीय है / इसमें उत्तरोत्तर अभिवृद्धि होती रहे यही शुभेच्छा / आ. विजयश्रेयांससूरि
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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