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________________ ___569 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 वंदन-वैयावच्च-भक्ति करने वाली आत्माओं को चौर्यासी के चक्करमें से शीघ्र मुक्ति दिलाये ऐसी शुभाभिलाषा / इनके नाम के प्रथम दो अक्षर एक सुप्रसिद्ध तीर्थंकर भगवान के नाम के साथ एकरूपता वाले हैं / वे योगनिष्ठ के रूप में सुप्रसिद्ध हो गये आचार्य भगवंत के समुदाय के हैं / वे अभी जिन आचार्य भगवंत की आज्ञा में हैं उनके नाम का अर्थ 'सुवर्ण जैसी कांतिवाला' होता है / 295 विहार में आते हुए प्रत्येक गांव-नगर-तीर्थों के प्रत्येक जिनबिंबों के समक्ष चैत्यवंदन // __39 वर्ष की उम्र में अपनी 16 वर्ष की पुत्री के साथ पू.आ. श्री भक्तिसूरिजी (समीवाले) के समुदाय में दीक्षित हुए यह साध्वीजी भगवंत जहाँ - जहाँ विहार करके जाते उस गाँव-नगर या तीर्थ में जितने जिनबिंब होते उन प्रत्येक के सम्मुख चैत्यवंदन करते / ... फिर वह शत्रुजय तीर्थ हो या जैसलमेर तीर्थ हो !!! उन्होंने वि.सं. 2023 में जैसलमेर तीर्थ में छोटे बड़े प्रायः 6000 जिनबिंबों के सम्मुख चैत्यवंदन करने की भावना डेढ माह स्थिरता कर पूर्ण की !... उनके पुत्री महाराज ने वहाँ सभी चैत्यवंदन करवाये थे !...... आप श्री ने इस प्रकार सौराष्ट्र, कच्छ, गुजरात और मारवाड़-राजस्थान के अनेक तीर्थों के प्रत्येक जिनबिंबों के सम्मुख-चैत्यवंदन करके जिनभक्ति का अपूर्व लाभ लिया था / देववंदनमाला कंठस्थ की हुई थी / शारीरिक प्रतिकूलताओं में भी कभी दोषित आहार नहीं लिया ! अनेक विध तप और स्वाध्याय के साथ दिन में 11-11 घंटो मौन की साधना करते थे। चाहे कैसा उग्र तप हो तो भी पूरी क्रिया स्वस्थता और स्फूर्ति से खड़े खड़े ही करते थे ! उनकी संसारी पक्ष की दो बहिनें, बहिन की तीन पुत्रीयाँ, भाई-भाभी,
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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