________________ 568 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 294 86 वर्ष का दीक्षा पर्याय / / / केवल 6 वर्ष की उम्र में अपने मातृश्री के साथ दीक्षित हुए, यह साध्वीजी भगवंत 86 वर्ष के सुदीर्घ संयम के प्रभाव से आज 92 वर्ष की उम्र में भी पाँचों इन्द्रियों की पटुता रखते हैं। वर्तमानकाल में इतने सुदीर्घ चारित्र पर्यायवाले शायद ही दूसरे कोई होंगे। मूल कच्छ-डुमरा के और सिद्धगिरि में दीक्षित हुए प्रवर्तिनी साध्वीजी आज 45 जितने शिष्या-प्रशिष्यादि से शोभायमान हो रहे हैं / वे अभी उम्र के कारण साबरमती (अहमदाबाद) में स्थिरवास हैं। उन्होंने उपमिति भवप्रपंचा महाकथा, स्याद्वादमंजरी, त्रिषष्ठि दश पर्व, ललित विस्तरा, उत्तराध्ययन सूत्र, मुक्तावली आदि के अध्ययनअध्यापन द्वारा सम्यक्ज्ञान पद की आराधना की है / 14 वर्ष की उम्र में अपनी जन्म-भूमि में बारसासूत्र का वांचन कर श्रोताजनों को मुग्ध बनाया था / ... उन्होंने तलाजा एवं शत्रुजय गिरिराज की 99 यात्रा आदि द्वारा सम्यग्दर्शन को निर्मल बनाया है। कच्छ-काठियावाड़, गुजरात, मारवाड़, महाराष्ट्र आदि में अप्रमतरूप से विचरण कर उन्होंने सम्यक्चारित्र की आराधना द्वारा स्वोपकार के साथ परोपकार एवं शासन प्रभावना की है / उन्होंने आचारांग-उत्तराध्ययन-दशपयन्ना सूत्रों के योगोद्वहन डेढ माह, दो माह, ढाई माह, चार माह का तप, वर्षीतप, नवपदजी की 105 ओलियाँ, 62 वर्ष तक ज्ञानपंचमी की आराधना, मासक्षमण, 19 उपवास, सोलहभत्ता, 6 अछाई, बीसस्थानक, वर्धमानतप, पोषदशमी, मौन एकादशी, मेरु त्रयोदशी, चैत्री पूनम आदि की आराधना द्वारा सम्यक् तप पद की आराधना करके विपुल कर्म निर्जरा की है। 86 वर्ष का निर्मल चारित्र इनको तथा इनके भावपूर्वक दर्शन