________________ 565 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 चिकित्सकों ने निदान किया कि, 'कण्ठ की स्वरपेटी में केन्सर की गाँठ है ! सभी के हृदय में स्थान-मान प्राप्त होने से सकल संघ चिंतित हो उठा कि क्या ऐसी श्रमणीरत्ना केवल 54 साल की उम्र में ही केन्सर रोग का भोग बन जायेगी !... मुंबई की टाटा अस्पताल के विशिष्ट चिकित्सकों ने निर्देश दिया कि, 'अगर बिजली के 'सोट' दिये जाएँगे तो शायद ठीक हो सकता है, अन्यथा यह मरीज 6 महिनों से अधिक जिन्दा नहीं रह सकेगा !' फिर भी प्रभु महावीर प्ररूपित कर्म विज्ञान को अच्छी तरह समझनेवाले साध्वीजी भगवंत ने सभी को स्पष्ट कह दिया कि, “मैं किसी प्रकार का सावध उपचार करवाना नहीं चाहती / इस देह-पिंजड़े को एक दिन तो छोड़ना ही है, तो जल्दी से छोड़ना या विलंब से छोड़ना इस में कोई खास फर्क नहीं पड़ता / महापुण्योदय से मुझे जिनशासन के द्वारा आयंबिल जैसा महान तप और महामंत्र नवकार का महामांगलिक जप मिला है। मैं इन्हीं के आलंबन से इस रोग को समता के द्वारा कर्मनिर्जरा का हेतु बनाउँगी।"... और उन्होंने लगातार वर्धमान परिणाम से वर्धमान आयंबिल तप की ओलियाँ चालु ही रखीं / साथमें महामंत्र नवकार का जप भी रात को ढाई-तीन बजे उठकर दीर्घ समय तक चालु ही रखा / करीब 10 साल तक कर्मसत्ता के सामने भीषण रण संग्राम चला / 10 साल तक आवाज बंद रही और हर डेढ साल में एक बार खुन का वमन होता था / बीच में एक बार भयंकर हृदय रोग का हमला भी हुआ, मगर "कार्यं साधयामि वा देहं पातयामि" जैसे सुदृढ़ संकल्प के धनी साध्वीवर्या ने अडिग श्रद्धा के साथ आयंबिल तप और नवकार महामंत्र का जप चालु ही रखा / आखिर कर्मसत्ता को हार माननी ही पड़ी। केन्सर केन्सल हो गया। हार्ट एटेक को ही मानो एटेक आ गया !! हरपीस भी हारकर दूर हठ गया !!! और आज 74 साल की उम्र में भी 101-102 इसी क्रम से आगे बढते हुए 109 ओलियाँ परिपूर्ण कर ली / वर्तमान में 500 आयंबिल की तपश्चर्या चालु है। सुविनीत 5 शिष्याप्रशिष्याएँ साथ में होते हुए भी, 74 साल की उम्र में भी "जात मेहनत जिन्दाबाद'' - सभी कार्य अपने हाथों से ही करते हैं, इतना ही नहीं, कई बार दूसरों को भी उनके कार्यों में वे सहयोग देते हैं !... ___ महामंत्र नवकार के उपर इनकी अटूट आस्था है / अपने पास आनेवाले दर्शनार्थियों को भी वे नवकार महामंत्र का जप करने की खास