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________________ 564 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 292 आयंबिल तप और नवकार जपका अनूठा प्रभाव हार्ट एटेक, हरपीस और केन्सर केन्सल हो गये !! इस संसार के राज्यमें कर्मराजाने चारों और अपना संपूर्ण सत्ताधिकार अनादि काल से जमाया है / इस कर्मसत्ता की अधीनता में समग्र संसारी जीवों को रहना पड़ता है / ... हालां कि समुद्र में भी रत्न होते हैं, रात्रि की कालिमा में भी सितारे चमकते हैं, काँटों के बीच भी गलाब जैसे फल खिलते हैं, इसी तरह इस अवनीतल के उपर कुछ विरल आत्माएँ ऐसी भी होती हैं जो धर्म महासत्ता की शरण अंगीकार करके कर्मसत्ता के सामने युद्ध छेड़ती हैं और उसमें प्रचंड पुरुषार्थ के द्वारा विजय की वरमाला को पहनती हैं / यहाँ पर एक ऐसी ही श्रमणीरत्ना का दृष्टांत प्रस्तुत है / कच्छआसंबीया (बड़ा) गाँव में वि.सं. 1982 में जन्मी हुई लक्ष्मीबहन का मन बचपन से ही संसार से विरक्त था। फिर भी लज्जालु स्वभाव के कारण अपनी वैराग्य भावना माता-पिता के सामने व्यक्त नहीं कर सकने से उन्हें वैवाहिक बंधन में बद्ध होना पड़ा / भिवितव्यतावशात् विवाह के बाद अल्प समय में ही पतिका परलोक गमन हो जाने से संयम का स्वीकार करने की भावना प्रबल हो उठी और सं. 2011 में माघ शुक्ल 14 के दिन उन्होंने संयम अंगीकार किया। अंगीकृत संयम को सफल बनाने के लिए उन्होंने अपना जीवन विनय वैयावच्च, तप-त्याग और ज्ञान-ध्यान में लगा दिया / वर्धमान आयंबिल तप की नींव एक बार डाली मगर पूर्ण नहीं हो पायी ! फिर भी हिम्मत नहीं हारकर पुनः नींव डाली ओर क्रमशः वर्धमान परिणाम से आगे बढ़ते हुए वि.सं.२०५० में 100 ओलियाँ परिपूर्ण की !!!... मगर इसी बीच में कर्मसत्ता ने उनकी कई प्रकार की कठिन-कठिनतर कसौटियाँ की, किन्तु दृढ मनोबल से आयंबिल तप एवं नवकार जप द्वारा उन सभी कसौटियों में से क्षेमकुशलता पूर्वक उत्तीर्ण होकर हमारे सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है, 'कि, हिम्मत से मर्दा, तो सहाय करे खुदा" ! वि.सं. 2036 में अचानक उनकी आवाज अवरुद्ध हो गयी !
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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