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________________ 558 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 देखकर शिष्याओंने भी उनका अनुकरण किया !!! इन साध्वीजी भगवंत ने यावज्जीव के लिए नमकीन-मेवे और फल का त्याग किया है। पिछले कितने ही वर्षो से चातुर्मास में मिठाई, कठोर वस्तु, कड़ा विगई आदि के त्यागपूर्वक केवल तीन द्रव्य ही वापरते हैं ! उन्होंने बीस स्थानक, अछाई, अठ्ठम आदि विशिष्ट तपश्चर्याएँ भी की हैं / __बाह्य तप के साथ साथ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण, रत्नाकरावतारिका तक न्याय के ग्रंथों का और कम्मपयड़ी तक के कर्म साहित्य का और आचारांग उत्तराध्ययन सूत्र आदि आगमों वगैरह का सुंदर अध्ययन किया है। ___ उनका उत्कृष्ट संयम जीवन देखकर अनेक ग्रेज्युएट युवतियों ने उनके पास संयम ग्रहण किया है। उसमें से अधिकतर साध्वीजी भगवंत वर्ष में मात्र एक बार ही वस्त्रों का साबुन से काप निकालते हैं ! कई साध्वीजी भगवंतों का यावज्जीव मिठाई, नमकीन, फल आदि का त्याग है / अधिकतर साध्वीजी कम से कम एकाशन का तप करते हैं, कई साध्वीजी अपना लोच अपने हाथों से ही करते हैं, कुछ साध्वीजीयों ने कम्मपयड़ी, खवगसेढी वगैरह का भी अभ्यास कर लिया है !.. उनकी निश्रा में प्रति वर्ष श्राविका शिविर का भी आयोजन होता है / इन शासन प्रभावक साध्वीजी भगवंत के नाम का पूर्वार्ध जितने प्रमाण में अपने पास होता है, उतने प्रमाणमें सानुकूल संयोग एवं सामग्री मिलती है, तथा उत्तरार्ध प्रत्येक के हाथ में अल्प या अधिक अंश में होता ही है / उनका सम्पूर्ण नाम भी प्रत्येक के हाथमें अल्प अधिक प्रमाण में होता ही है !... उनके संसारी परिवार में से 6 जनों ने दीक्षा ली है / उसमें से / उनके दो चाचा आचार्य के रूपमें सुंदर शासन प्रभावना कर रहे हैं /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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