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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 559 / 49 वर्षों से चौविहार उपवास से वर्षातय करती / हुई दीर्घ तपस्विनी, शासन गौरव साध्वीजी / श्री जिनशासन में आज भी ऐसी महान तपस्वी विभूतियाँ विद्यमान हैं जिनकी घोर-वीर-उदग्र-दीर्घ तपश्चर्या इस पदार्थवादी और भौतिकवादी युग के लिए चुनौती बनी हुई है। _ वि.सं. 1985 में 21 साल की उम्र में दीक्षा लेकर आज 91 साल की उम्र और 70 साल के दीक्षा पर्याय में पिछले 49 वर्षों से आजीवन प्रतिज्ञा पूर्वक चौविहार उपवास से वर्षीतप करने द्वारा 9000 से अधिक चौविहार उपवास, 3365 तिविहार उपवास, 1173 छाछ की आछ के आगार वाले उपवास, कुल 13 // हजार से अधिक उपवास और दीर्घ तपश्चर्याओं के साथ साथ चित्र-विचित्र अनेकविध आश्चर्यप्रद-अहो भाव प्रेरक अभिग्रहों को धारण करनेवाली साध्वीजी आज भी श्री जिनशासन में विद्यमान हैं !... वि.सं. 1964 में भाद्रपद शुक्ला अष्टमी के दिन जन्मी हुई उपरोक्त साध्वीजी ने गृहस्थ जीवन में कष्टों और बाधाओं को अपने मनोबल से कैसे झेला ? विवाहित होकर भी अविवाहित क्यों रहीं ? वैराग्य का जागरण कैसे संघर्षो का आमंत्रण बन गया ? एकाक्ष करने का प्रयत्न, शीलहरण का षड्यंत्र, और येन-केन प्रकारेण दीक्षा के अयोग्य ठहराने के अभिक्रम कैसे विफल हो गये ? कैसे सफल हुई दीक्षा की आकांक्षा ? साध्वी जीवन में कैसे परीषह आये ? कैसे उपद्रव भरी रातें बिताईं और कैसे मोत के क्षणों में अभय मुद्रा अविचल बनी रही ? आपकी वाणी ने, दर्शन और स्पर्शन ने चरण रज और शिवाम्बु ने किन सुखद स्थितियों की सृष्टि की है ? इत्यादि का विस्तृत वर्णन तो 'आदर्श साहित्य संघ प्रकाशन' - चुरु (राजस्थान) द्वारा प्रकाशित 'दीर्घ तपस्विनी' किताब (250 पन्ने) में अत्यंत रोचक शैलिमें दिया गया है। विशेष जिज्ञासुओं के लिए उपर्युक्त किताब खास पठनीय है। यहाँ पर तो दीक्षित जीवन में की हुई तपश्चर्या की तालिका .... उनके आजीवन प्रतिज्ञाओं एवं विविध अभिग्रहों के कुछ अंश प्रस्तुत करने द्वारा ही उनकी भीष्म तपश्चर्यामय जीवनचर्या की हार्दिक अनुमोदना करके संतोष मानना उचित समझा है / तो सर्वप्रथम
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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