________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 - 557 उन्होंने पिछले 6 वर्षों से मन में कोई अभिग्रह ग्रहण किया है। जब तक अभिग्रह पूरा नहीं होगा तब तक मौन के साथ वर्षीतप चालु रखा है / ऐसे उत्तम आत्मा को दूसरी तो भौतिक अपेक्षा कहाँ से हो ! किन्तु गहरी आत्मिक अनुभूति की अपेक्षा हो सकती है / शासनदेव उनके अभिग्रह को- उनकी उच्च आध्यात्मिक भावना को शीघ्र परिपूर्ण करने का बल प्रदान करें यहीं शुभाभिलाषा / इन साध्वीजी के नाम का अर्थ 'पृथ्वी' होता है। उनके गुरुणी के नाम का पूर्वार्ध एक सर्वजन वल्लभ ऋतु का नाम है / उत्तरार्ध का अर्थ 'कांति-तेज' ऐसा होता है / इन गुरुणी के भानजी ने मूर्तिपूजक समुदाय में दीक्षा ली है / वे पिछले 15 वर्षों से रोज सवेरे उठते समय 100 लोगस्स काउस्सग्ग करते हैं। नवकार और उसके प्रत्येक पद का भी खब जाप करते हैं / परिणाम स्वरूप उनको कितनी ही विशिष्ट आंतरिक अनुभूतियाँ होती रहती हैं / उनके नाम का अर्थ "सुंदर समक्तिवंत" होता है / वे नाम के अनुसार शुद्ध निश्चय समकित को शीघ्र प्राप्त करें ऐसी प्रभु से प्रार्थना / सभी ऐसे दृष्टांतों से प्रेरणा लेकर आध्यात्मिक साधना की तीव्रतम अभिरुचि जगाएँ यही शुभ भावना / 290 निर्दोष गोचरी के अभाव में 15 दिन तक बने आदि सूखी वस्तुओं से निर्वाह / / केवल 50 वर्ष की उम्र में और 21 वर्ष के दीक्षा पर्याय होने के बाबजूद लगभग 100 जितने शिष्या-प्रशिष्याओं के परिवार से शोभते इन साध्वीजी भगवंत ने छ'री' पालित संघ के साथ जेसलमेर तीर्थ की यात्रा की / उन्होंने वापस आते समय संघ की तरफ से सभी व्यवस्था होने के बावजूद भी उन्हें स्वीकार नहीं किया / रास्ते में जैन आबादी के अभाव में निर्दोष गोचरी की असंभावना के कारण 15-15 दिन तक चने आदि सूखी वस्तुओं से जीवन निर्वाह किया ! गुरुणी का ऐसा आचार