________________ 556 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 238938288888 ETER लगातार 6 वर्षों से मौन के साथ वर्षातप चाल / कच्छ-मुन्द्रा तहसिल के एक गाँव में स्थानकवासी परिवारमें जन्मी इस आत्मा को पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण छोटी उम्र से ही आत्मसाधना का रंग लगा / फिर भी कर्म संयोग से विवाह करना पड़ा। वे गृहस्थाश्रम में भी जलमें कमल की तरह निर्लेप रहे / इन्होंने 60 वर्ष की उम्र में करीब 10 वर्ष पहले छह कोटि लीबड़ी संप्रदाय में दीक्षा अंगीकार की। स्थानकवासी समुदाय में जन्म एवं दीक्षा लेने के बावजूद भी जिनप्रतिमा के प्रति उनको अद्भुत आकर्षण है / वे अनुकुलता के अनुसार कई बार 4-6 घंटे तक जिनमंदिर में बैठकर प्रभुभक्ति में लीन बन जाती हैं। कच्छ के एक सुप्रसिद्ध तीर्थ भद्रेश्वर में प्रभुभक्ति करते समय प्रभुजी के हाथ में रहा हुआ फूल अचानक उड़कर उनके हाथ में आ गया था !!! उनको भक्ति-जाप और ध्यान साधना के प्रभाव से नये नये आध्यात्मिक अनुभव होते रहते हैं / एक बार उन्हें देवलाली में साधना के दौरान विशिष्ट प्रकाश के दर्शन और अवर्णनीय आनंद की अनुभूति हुई थी। वर्ष में दो बार जब मस्तक के बालों का लोच होता है तब लोच में जितना समय लगता है, उतनी देर उनको विशिष्ट प्रकाश की अनुभूति होती है। साधना के दौरान 'आगामी भवमें खुद एक विशिष्ट पदवी को प्राप्त करेंगे' ऐसा संकेत उनको मिला है / वह स्वभाव से अत्यंत भद्रिक परिणामी हैं / बीच में कुछ समय तक पशु-पक्षियों की भाषा भी वे सहजता से जान सकते थे !....