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________________ 554 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 क्योंकि यदि गृहस्थ को पता चले तो वे साधु के निमित्त आरंभ समारंभ करके विशेष रसोई बनायेंगे, जो साधु को नहीं कल्पती / महोत्सवादि होने से अपने मान कषाय को पोषण मिलने की भी संभावना रहती है। इसी कारण से इन साध्वीजी भगवंत ने एकदम सहजभाव से ही पारणा कर लिया / धन्य है उनकी निःस्पृहता को !.. सहजता को !! .. इन साध्वीजी भगवंत के नाम के ढाई अक्षर के पूर्वार्ध का अर्थ 'सुन्दर' होता है तथा उत्तरार्ध जिस किसी के जीवन में होता है, वह आदरणीय सम्माननीय और प्रशंसनीय बनता है। (2) वागड़ समुदाय में भी एक साध्वीजी भगवंत ने करीब 7 वर्ष पूर्व अहमदाबाद चातुर्मास के दौरान 100 वीं औली का पारणा उपर मुताबिक सादगीपूर्वक सहजभाव से किया था / धन्य है, इनकी निःस्पुहता को !... उनके विशाल समुदाय में भी शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि इन साध्वीजी की 100 ओलियाँ पूर्ण हो चूकी हैं। इन साध्वीजी भगवंत के नाम का पूर्वार्ध अर्थात् चार घातीकर्मों के क्षय होने से प्रकट होते आत्मा के चार गुणों के आगे विशेषण के रूप में उपयुक्त होता हुआ एक शब्द !.. और उत्तरार्ध अर्थात् सूर्यचन्द्र जिसके द्वारा शोभते हैं वह !!! - अब तो समझ गये ना, ऐसे नि:स्पृही तपस्वी महात्मा कौन होंगे !!! 288 // 12 वर्ष तक अखंड मौन के साथ आत्मसाधना / / / मौन भाव में रहकर आत्मस्वरूप का मनन करे, वह मुनि ! एक साध्वीजी ने ऐसी मुनि दशा पाप्त करने के मनोरथ के साथ दि. 27-5-1989 से 14 वर्ष की सुदीर्घकालीन आत्मसाधना का संकल्प किया है।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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