________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 551 उन्होनें बिगड़े हुए स्वास्थ्य में भी लगातार 27 आयंबिल किये थे। आयंबिल में केवल मूंग का पानी और थोड़े चावल ही लेते थे ! फिर भी उनका अप्रमत्तभाव अजीब सा था / स्वास्थ्य की अन्तिम गंभीर अवस्था में डॉक्टर की सलाह अनुसार जब रात्रिमें उनके मुँह में अणाहारी औषध के रूपमें अंबर डालने का निर्णय किया गया, तब सबको लगता था कि वे बेहोश अवस्था में हैं। परंतु जैसे ही औषध ने ओठों का स्पर्श किया कि तुरन्त ही उन्होंने आँख खोलकर धीरे से कहा कि - "अरे, यह क्या कर रहे हो ! मुझे कुछ नहीं हुआ' !... आखिर उन्होंने अपनी अन्तिम अवस्था में भी अणाहारी औषध नहीं ही लिया !!! उत्सर्ग मार्ग की जिनाज्ञा के पालन के लिए कैसी चुस्तता !!! ___ अंत में भी वीर... वीर... वीर... बोलते हुए उन्होंने समाधिपूर्वक देहत्याग किया !... 286 . स्वानुभूति संपत्र साध्वीजी की अदभुत निरीहता उपरोक्त दृष्टांत में वर्णित साध्वीजी भगवंत के पास अनेक मुमुक्षु कुमारिकाएँ दीक्षा लेने आतीं / परंतु वे 4-5 वर्ष तक संयम का प्रशिक्षण देने से पहले प्रायः किसी को दीक्षा नहीं देते थे / उन्हें पूरी जाँच करने के बाद यदि योग्य लगता तो ही उसे दीक्षा देते थे। उनका कालधर्म हुआ तब उनकी निश्रा में 3 मुमुक्षु कुमारिकाएँ... धार्मिक अभ्यास करती थीं / उन तीनों ने निर्णय किया कि अब अपने को उपरोक्त साध्वीजी के संसारी सगे भानजी म.सा. के पास ही दीक्षा लेनी / वे भी नाम के अनुसार अनेक गुणों के भंडार, स्वानुभूति सम्पन्न, परमात्मा और गुरु महाराज को अनन्य भाव से समर्पित, सुसंयमी साध्वीजी हैं / इसलिए तीनों कुमारिकाओंने उन्हें अपनी शिष्या के रूपमें स्वीकार करने के लिए विनंती की। किन्तु निःस्पृही ऐसे इन महात्माने जवाब दिया