________________ 550 550 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 (2) आँख में मकोड़ा फिर भी अजीब समता : . एक बार रात्रि के समयमें उनकी आँखमें मकोड़ा गिर गया !... आँख में से अश्रुओं की धारा बहती गयी / आँख सुझकर बड़ी हो गयी। फिर भी इन महात्माने उसकी परवाह नहीं की / यदी आँख को मला तो मकोड़े को त्रास होगा, यह विचारकर करुणावंत इन साध्वीजी भगवंत ने पूरी रात ऐसे ही नवकार महामंत्र के स्मरण के बल पर समतापूर्वक व्यतीत की !... सवेरा होते ही मकोड़ा अपने आप बाहर निकल गया / कैसी अद्भुत सहनशीलता !... जीवदया की कैसी उत्कृष्ट भावना !!! देहाध्यास के उपर कैसी बेजोड़ विजय !!! (3) अंत समय भी जिनाज्ञा और गुरु आज्ञा का पालन : आशातावेदनीय कर्म के उदय से अन्तिम चार वर्ष तक उनका स्वास्थ्य बहुत खराब रहा / कई बार खून की दस्तें लगने से बहुत कमजोरी आ जाती / फिर भी नव आगंतुक को पता ही नही चलता कि ये साध्वीजी बीमार होंगे / ऐसी अद्भुत प्रसन्नता और तेज हमेशा उनके मुख मंडल पर छाया रहता था / ___ सं. 2031 के अन्तिम चातुर्मास के समय उनका स्वास्थ बहुत खराब था / गुरुभक्त शिष्याएँ उन्हें छोड़कर अन्यत्र चातुर्मास हेतु नहीं जाना चाहती थीं / फिर भी उन्होंने गच्छाधिपतिश्री की आज्ञा को शिरोमान्य करके अपनी शिष्या-प्रशिष्याओं को अलग-अलग 7 स्थानों पर चातुर्मास करने हेतु भेज दिया !.... इसी चातुर्मास में उनका कार्तिक सुदि 8 की रात्रि में देहविलय हुआ / उनसे थोड़े ही दूर चार कि.मी. के अंतर पर दूसरे गाँव में उनकी थोड़ी शिष्याएँ चातुर्मास हेतु विराजमान थीं / उन्होंने उनके देहविलय से थोड़े दिन पहले ही उनके दर्शनार्थ आने की अनुमति मंगवायी थीं / किन्तु संयम जीवन की मर्यादाओं के चुस्तरूप से पालक, ऐसे उन्होंने पत्रोत्तर भेजा कि, "चार्तुमासिक मर्यादाओं का उल्लंघन करके यहाँ आने से बहेतर होगा कि, जहाँ हो वहाँ रहकर शुभभावनापूर्वक नवकार मंत्र का जाप करो।" शास्त्रीय मर्यादाओं के पालन हेतु कैसी अनुमोदनीय जागरुकता /