SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 626
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 549 285 - आंख में मकोड़ा प्रविष्ट हो गया, फिर भी आत्मज्ञ साध्वाजा की अजीब साता। वह थे योगनिष्ठा, स्वानुभूति सम्पन्न, व्यवहार-निश्चय के समन्वयकारी, यथार्थनामी साध्वीजी भगवंत / इनके जीवन में 'उदय प्राप्त गुणों' का वर्णन करने के लिए यह कलम अत्यंत असमर्थ लगती है। अप्रमत्तरूप से गुरुसेवा के साथ मौन, भक्ति, जाप और ध्यान के प्रभाव से वे बहुत ही उच्च आध्यात्मिक अवस्था में पहुंचे हुए थे उनके जीवन के अनेक प्रसंगों में से केवल तीन प्रसंग यहाँ संक्षेप में देखेंगे / __(1) बिच्छु के डंक के बावजूद डोली उठाकर 35 कि.मी. का विहार : सं. 2008 में इनके दीक्षा लेने के बाद बड़ी दीक्षा के योग चाल थे / उस समय पू. उपाध्यायजी भगवंत (पीछे से गच्छाधिपति आचार्य श्री) के वयोवृद्ध माँ महाराज वहाँ से 70 कि.मी. दूर एक तीर्थ में बिराजमान थे / उनको अपने पास बुलाने के लिए कोई दो साध्वीजी महाराजों को भेजने के लिए पू. उपाध्यायजी म.सा. ने सूचन किया / किसी की भी 70 कि.मी. तक डोली उठाने की हिम्मत नहीं चल रही थी / तब नवदीक्षित उपरोक्त साध्वीजी भगवंत ने गुरु आज्ञा प्राप्त कर जोग पूर्ण होने के साथ ही पारणे के दिन पोरिसी बियासना करके एक दूसरे साध्वीजी भगवंत के साथ विहार किया / वे उग्र विहार कर तीर्थ में पहुँचे / वहाँ से वयोवृद्ध साध्वीजी को डोली में साथ लेकर लगभग आधे रास्ते पहुंचे तब उनको (नवदीक्षित को ) पैर में बिच्छु ने काटा / उन्हें भयंकर वेदना होने लगी / फिर भी उन्होंने वेदना की परवाह नहीं की, समय पर गुरु महाराज के पास पहुँचने का होने के कारण बीचमें उपचार हेतु कहीं रूके बिना, पैर में पट्टी बाँधकर विहार चालु रखा और समय पर गुरु महाराज के पास पहुँच गये !... उनकी ऐसी गजब की सहनशीलता और हिम्मत वगैरह देखकर गुरुमहाराज ने उनके ऊपर आशीर्वाद की अमीवृष्टि की !...
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy