________________ 548 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 दिन लगातार दो दिन विगई का सेवन नहीं किया !!! अनेक प्रकार के तप निरंतर चालु रखे इसी कारण से वे धन्ना अणगार के नाम से चारों और प्रसिद्ध हुए। उन्होंने वर्षांतप ... बीस स्थानकतप .... शंखेश्वर पार्श्वनाथ के 108 अठुम ... महावीर स्वामी की 229 छठ .... 12 अठ्ठम .... सिद्धितप .... सोलहभत्ता ... चत्तारि-अठ्ठ-दस-दोय तप .... 6 अट्ठाईयाँ .... नवकार महामंत्र के पदों की उपवास से आराधना.... मेरूतप... भद्रप्रतिमा.... महाभद्र प्रतिमा... 'श्रेणितप .... वर्गतप ... घनतप .... कर्मसूदनतप .... उपवास से सहस्रकूट (1024 उपवास) .... घड़िया दो घड़िया तप .... 250, 500, 700 वगैरह लगातार आयंबिल .... लगातार 1176 आयंबिल (इस तप के दौरान शासनदेव ने उनकी कठिन परिक्षाएँ की थी, जिसमें वे अडिग रहे थे)... परमात्मा के कल्याणक के अंतर्गत वर्धमानतप की 100 ओलियाँ, शत्रुजयकी दो विभागोंमें प्रायः लगातार १०८-चौविहार छठ्ठ के साथ 7-7 यात्राएँ (पारणे के दिन भी एक यात्रा करने के बाद ही पारणा करते) इतनी तपश्चर्या की, फिर भी वे मान सम्मान से हमेशा दूर ही रहते थे। उन्हें 2043 में जिनमंदिर से वापस आते समय रास्ते में गाय ने सिंग से उछालकर दूर फेंक दिया !.... हाथ - पैर की हड्डियाँ टूट गयीं। साथ में रहे साध्वीजी के तो होश ही उड़ गये / डोक्टरने उनको प्लास्टर लंगाया तथा दवा दी / किन्तु उन्हें तपशक्ति पर ऐसा अटूट विश्वास था कि दवा ली ही नहीं !... उनका संवत् 2045 में पिछले 3 वर्ष से आगाढ महाधन तप चालु था। पर्युषण के बाद स्वास्थ्य बिगड़ा ! फिर भी उन्होंने तपश्चर्या चाल ही रखी। आखिर कार्तिक वदि 2 के दिन नवकार महामंत्र का श्रवण करते करते उनका समाधिपूर्वक कालधर्म हुआ। अग्निसंस्कार के समय बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उनका एक वस्त्र नहीं ही जला !!! इन साध्वीजी भगवंत के नाम का पूर्वार्ध एक विशिष्ट फूल का नाम है, तथा उत्तरार्ध का अर्थ "कांति-तेज" ऐसा होता है / उनकी तपश्चर्या आदि आराधना की हार्दिक अनुमोदना.....